Saturday 21 March 2015

वास्तु & ज़रूरी उपाय

                           वास्तु : मकान बनाने से पहले याद रखें यह 5 बातें

वास्तु : मकान के लिए कैसी भूमि का चयन करें 

 1. भूमि-परीक्षा- भूमि के मध्य में एक हाथ लंबाएक हाथ चौड़ा व एक हाथ गहरा गड्ढा खोदें। खोदने के बाद निकली हुई सारी मिट्टी पुन: उसी गड्ढे में भर दें। यदि गड्ढा भरने से मिट्टी भर जाए तो वह उत्तम भूमि है। यदि मिट्टी गड्ढे के बराबर निकलती है तो वह मध्यम भूमि है और यदि गड्ढे से कम निकलती है तो वह अधम भूमि है। 

 दूसरी विधि- उपर्युक्त प्रकार से गड्ढा खोदकर उसमें पानी भर दें और उत्तर दिशा की ओर सौ कदम चलेंफिर लौटकर देखें। यदि गड्ढे में पानी उतना ही रहे तो वह उत्तम भूमि है। यदि पानी कम (आधा) रहे तो वह मध्यम भूमि है और यदि बहुत कम रह जाए तो वह अधम भूमि है। अधम भूमि में निवास करने से स्वास्थ्य और सुख की हानि होती है।
 
ऊसरचूहों के बिल वालीबांबी वालीफटी हुईऊबड़-खाबड़गड्ढों वाली और टीलों वाली भूमि का त्याग कर देना चाहिए।

 जिस भूमि में गड्ढा खोदने पर राखकोयलाभस्महड्डीभूसा आदि निकलेउस भूमि पर मकान बनाकर रहने से रोग होते हैं तथा आयु का ह्रास होता है।

  2. भूमि की सतह- पूर्वउत्तर और ईशान दिशा में नीची भूमि सब दृष्टियों से लाभप्रद होती है। आग्नेयदक्षिणनैऋत्यपश्चिमवायव्य और मध्य में नीची भूमि रोगों को उत्पन्न करने वाली होती है।

 दक्षिण तथा आग्नेय के मध्य नीची और उत्तर एवं वायव्य के मध्य ऊंची भूमि का नाम 'रोगकर वास्तुहैजो रोग उत्पन्न करती है।

 3. गृहारम्भ- वैशाखश्रावणकार्तिकमार्गशीर्ष और फाल्गुन मास में गृहारंभ करना चाहिए। इससे आरोग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होती है।

 नींव खोदते समय यदि भूमि के भीतर से पत्थर या ईंट निकले तो आयु की वृद्धि होती है। यदि राखकोयलाभूसीहड्डीकपासलोहा आदि निकले तो रोग तथा दु:ख की प्राप्ति होती है।

 4. वास्तुपुरुष के मर्मस्‍थान- सिरमुखहृदयदोनों स्तन और लिंग- ये वास्तुपुरुष के मर्मस्थान हैं। वास्तुपुरुष का सिर 'शिखीमेंमुख 'आप्मेंहृदय 'ब्रह्मामेंदोनों स्तन 'पृथ्वीधरतथा 'अर्यमामें और लिंग 'इन्द्रतथा 'जयमें है (देखे- वास्तुपुरुष का चार्ट)। वास्तुपुरुष के जिस मर्मस्थान में कीलखंभा आदि गाड़ा जाएगागृहस्वामी के उसी अंग में पीड़ा या रोग उत्पन्न हो जाएगा।

  5. गृह का आकार- चौकोर तथा आयताकार मकान उत्तम होता है। आयताकार मकान में चौड़ाई की दुगुनी से अधिक लंबाई नहीं होनी चाहिए। कछुए के आकार वाला घर पीड़ादायक है। कुंभ के आकार घर कुष्ठ रोग प्रदायक है। तीन तथा छ: कोन वाला घर आयु का क्षयकारक है। पांच कोन वाला घर संतान को कष्ट देने वाला है। आठ कोन वाला घर रोग उत्पन्न करता है। 

 घर को किसी एक दिशा में आगे नहीं बढ़ाना चाहिए। यदि बढ़ाना ही है तो सभी दिशाओं में समान रूप से बढ़ाना चाहिए। यदि घर वायव्य दिशा में आगे बढ़ाया जाए तो वात-व्याधि होती है। यदि वह दक्षिण दिशा में बढ़ाया जाए तो मृत्यु-भय होता है। उत्तर दिशा में बढ़ाने पर रोगों की उत्पत्ति होती है। 

वास्तु अनुसार कैसे करें भवन का निर्माण

हर किसी की आंखों में खूबसूरत घर का सपना रहता है। यह सपना साकार करने के लिए हम तमाम जतन भी करते हैं। जितना ध्यान हम घर के बाहरी खूबसूरती पर देते हैंउतना ही घर के अंदर का वास्तु भी महत्वपूर्ण हैं। आइए जानते है भवन के अंदर का वास्तु कैसा होना चाहिए। 

 * पूजा घर या अध्ययन कक्ष उत्तर-पूर्व (ईशान) में बनाना लाभकारी है। 

 * अपने रसोईघर को दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम में बनवाएं। 

 * रसोईघर का निर्माण अगर दिशा-निर्देश को ध्यान में रखकर किया जाएतो भोजन तो स्वादिष्ट बनता ही हैसाथ ही आर्थिक दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण है। 

 * मकान का ड्राइंग रूम उत्तर-पूर्वउत्तर या पूर्व दिशा में होना चाहिए। 

 * प्रवेश द्वार भी आप इन्हीं दिशाओं में बना सकते हैं। 

 * अगर आपके प्लॉट के अनुसारइन दिशाओं में प्रवेश द्वार बनाना संभव नहीं है तो कुशल वास्तु विशेषज्ञ से परामर्श लेकर प्रवेश द्वार हेतु निर्णय लेना चाहिए। 

 * वास्तु के अनुसार यूं तो टॉयलेट घर में नहीं होना चाहिएलेकिन आजकल यह संभव नहीं है। इसलिए इसे पश्चिमदक्षिण या उत्तर-पश्चिम दिशा में बनवाना चाहिए। 

 * परिवार के मुखिया और उसकी पत्नी के लिए घर का मास्टर बेडरूम दक्षिण-पश्चिमपश्चिम या दक्षिण दिशा में हो। 

वास्तु : मकान बनाते समय यह 5 बातें कभी ना भूलें

1 . गृह‍ निर्माण की सामग्री- ईंटलोहापत्थरमिट्टी और लकड़ी- ये नए मकान में नए ही लगाने चाहिए। एक मकान में उपयोग की गई लकड़ी दूसरे मकान में लगाने से गृहस्वामी का नाश होता है। 

 मंदिरराजमहल और मठ में पत्थर लगाना शुभ हैपर घर में पत्‍थर लगाना शुभ नहीं है। 

 पीपलकदम्बनीमबहेड़ाआमपाकरगूलररीठावटइमलीबबूल और सेमल के वृक्ष की लकड़ी घर के काम में नहीं लेनी चाहिए। 

 2 . गृह के समीपस्थ वृक्ष- आग्नेय दिशा में वटपीपलसेमलपाकर तथा गूलर का वृक्ष होने से पीड़ा और मृत्यु होती है। दक्षिण में पाकर वृक्ष रोग उत्पन्न करता है। उत्तर में गूलर होने से नेत्ररोग होता है। बेरकेलाअनारपीपल और नीबू- ये जिस घर में होते हैंउस घर की वृद्धि नहीं होती।

 घर के पास कांटे वालेदूध वाले और फल वाले वृक्ष हानिप्रद हैं। 

 पाकरगूलरआमनीमबहेड़ापीपलकपित्थबेरनिर्गुण्डीइमलीकदम्बबेल तथा खजूर- ये सभी वृक्ष घर के समीप अशुभ हैं। 

 3. गृह के समीपस्थ अशुभ वस्तुएं- देव मंदिरधूर्त का घरसचिव का घर अथवा चौराहे के समीप घर होने से दु:खशोक तथा भय बना रहता है। 

 4 . मुख्य द्वार- जिस दिशा में द्वार बनाना होउस ओर मकान की लंबाई को बराबर नौ भागों में बांटकर पांच भाग दाएं और तीन भाग बाएं छोड़कर शेष (बाईं ओर से चौथे) भाग में द्वार बनाना चाहिए। दायां और बायां भाग उसको मानेजो घर से बाहर निकलते समय हो। 

 पूर्व अथवा उत्तर में स्‍थित द्वार सुख-समृद्धि देने वाला होता है। दक्षिण में स्थित द्वार विशेष रूप से स्त्रियों के लिए दु:खदायी होता है। 

 द्वार का अपने आप खुलना या बंद होना अशुभ है। द्वार के अपने आप खुलने से उन्माद रोग होता है और अपने आप बंद होने से दुख होता है। 

 5 . द्वार-दोष-  मुख्य द्वार के सामने मार्ग या वृक्ष होने से गृहस्वामी को अनेक रोग होते हैं। कुआं होने से मृगी तथा अतिसार रोग होता है। खंभा एवं चबूतरा होने से मृत्यु होती है। बावड़ी होने से अतिसार एवं संनिपात रोग होता है। कुम्हार का चक्र होने से हृदय रोग होता है। शिला होने से पथरी रोग होता है। भस्म होने से बवासीर रोग होता है। 

 यदि घर की ऊंचाई से दुगुनी जमीन छोड़कर वैध-वस्तु हो तो उसका दोष नहीं लगता। 

जानिएवास्तु अनुरूप कैसा रंग करवाएं कमरों में

रंगों का हमारे जीवन पर गहरा असर पड़ता है। जीवन की शांति के लिए और मन की प्रसन्नता के लिए इस दीपावली पर रंगों का कैसे करें घर में इस्तेमालबता रही हैं वास्तुविद् रेखा जोशी - 

नीला या बैंगनी रंग शांति का प्रतीक है ,इसे बेडरूम में या ध्यान कक्ष में इस्तेमाल करना चाहिए। 

 * बच्चों के कमरे के लिए हरा रंग शुभ है ,यह रंग उन्नति का प्रतीक है। 

*  घर के पूजाकक्ष के लिए पीला रंग उत्तम माना गया है। 

 * घर के स्टडी रूम के लिए भी पीला रंग श्रेष्ठ है। 

 * अगर आपका बेडरूम उत्तर दक्षिण दिशा में है तो वहां सफेद रंग करवाना शुभ माना गया है। 

 * घर के अंदर की तरफ की छतों पर भी सफेद रंग लगवाना शुभ है। 

कैसे जानें घर की शुभता पढ़ें 'इन्द्र-काल-राजा'

वास्तु शास्त्र में शुभ और अशुभ को जानने का बेहद रोचक तरीका प्रचलित है। आइए जानते हैं- 

 घर की सीढ़ियांखंभेखिड़कियांदरवाजे आदि की 'इन्द्र-काल-राजा'इस क्रम से गणना करें। यदि अंत में 'कालआए तो अशुभ समझना चाहिए। इन्द्र आए तो शुभ और राजा आए तो मध्यम।  

वास्तु : पूजा घर ऐसा कि देवता भी ठहर जाए

वास्तु विज्ञान के अनुसार देवी-देवताओं की कृपा घर पर बनी रहेइसके लिए पूजाघर वास्तुदोष से मुक्त होना चाहिए। जहां पूजाघर वास्तुदोष के नियमों के विपरीत होता हैवहां ध्यान और पूजा करते समय मन एकाग्र नहीं रह पाता है। इससे पूजा-पाठ का पूर्ण लाभ नहीं मिलता है।
 

वास्तु विज्ञान के अनुसार पूजाघर पूर्व अथवा उत्तर दिशा में होना चाहिए। इन दिशाओं में पूजाघर होने पर घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। पूजाघर के ऊपर अथवा इसके अगल-बगल में शौचालय या स्नानघर नहीं होना चाहिए। आजकल बहुत से लोग सीढ़ी के नीचे या तहखाने में पूजाघर बनवा लेते हैंजो वास्तु के अनुसार उचित नहीं है।

अगर एक ही घर में कई लोग रहते हैं तो अलग-अलग पूजाघर बनवाने की बजाए मिल-जुलकर एक पूजाघर बनवाएं। एक ही मकान में कई पूजाघर होने पर घर के सदस्यों को मानसिकशारीरिक एवं आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। भगवान को एक-दूसरे से कम से कम 1 इंच की दूरी पर रखें। अगर घर में एक ही भगवान की दो तस्वीरें हों तो दोनों को आमने-सामने बिलकुल न रखें। एक ही भगवान के आमने-सामने होने पर घर में आपसी तनाव बढ़ता है।

 अगर जगह की कमी के कारण शयन कक्ष में ही पूजाघर बनाना पड़े तो ध्यान रखें कि बिछावन इस प्रकार हो ताकि सोते समय भगवान की ओर पैर नहीं हो।

वास्तु : कैसा हो दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का स्थान 

ईशान कोण में करें महालक्ष्मी पूजन 

 धन-वैभव और सौभाग्य प्राप्ति के लिए दीपावली की रात्रि को लक्ष्मीपूजन श्रेष्ठ माना गया है। पूजास्थल तैयार करते समय दिशाओं का भी उचित समन्वय रखना जरूरी है। 

पूजा का स्थान ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) की ओर बनाना शुभ है। इस दिशा के स्वामी भगवान शिव हैंजो ज्ञान एवं विद्या के अधिष्ठाता हैं। 

  पूजास्थल पूर्व या उत्तर दिशा की ओर भी बनाया जा सकता है। पूजास्थल को सफेद या हल्के पीले रंग से रंगें। ये रंग शांतिपवित्रता और आध्यात्मिक प्रगति के प्रतीक हैं। 

 देवी-देवताओं की मूर्तियां तथा चित्र पूर्व-उत्तर दीवार पर इस प्रकार रखें कि उनका मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की तरफ रहे।

 पूजा कलश पूर्व दिशा में उत्तरी छोर के समीप रखा जाए तथा हवनकुंड या यज्ञवेदी का स्थान पूजास्थल के आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा) की ओर रहना चाहिए। 

 

वास्तु फेंगशुई : क्या करें जब घर में हो नकारात्मक ऊर्जा

हम जिस स्थान पर रहते हैंउसे वास्तु कहते हैं। इसलिए जिस जगह रहते हैंउस मकान में कौन-सा दोष हैजिसके कारण हम दुःख-तकलीफ उठाते हैंइसे स्वयं नहीं जान सकते। हमें यह भी पता नहीं रहता कि उस घर में नकारात्मक ऊर्जा है या सकारात्मक। किस स्थान पर क्या दोष हैलेकिन यहां पर कुछ सटीक वास्तुदोष निवारण के उपाय दिए जा रहे हैंजिसके प्रयोग से हम आप सभी लाभान्वित होंगे। 

ईशान अर्थात ई-ईश्वरशान-स्थान। इस स्थान पर भगवान का मंदिर होना चाहिए एवं इस कोण में जल भी होना चाहिए। यदि इस दिशा में रसोई घर हो या गैस की टंकी रखी हो तो वास्तुदोष होगा। अतः इसे तुरंत हटाकर पूजा स्थान बनाना चाहिए या फिर इस स्थान पर जल रखना चाहिए।

पूर्व दिशा में बाथरूम शुभ रहता है। खाना बनाने वाला स्थान सदैव पूर्व अग्निकोण में होना चाहिए।

भोजन करते वक्त दक्षिण में मुंह करके नहीं बैठना चाहिए।

शयन कक्ष प्रमुख व्यक्तियों का नैऋत्य कोण में होना चाहिए। बच्चों को वायण्य कोण में रखना चाहिए।

शयनकक्ष में सोते समय सिर उत्तर मेंपैर दक्षिण में कभी न करें।

अग्निकोण में सोने से पति-पत्नी में वैमनस्यता रहकर व्यर्थ धन व्यय होता है।

ईशान में सोने से बीमारी होती है।

पश्चिम दिशा की ओर पैर रखकर सोने से आध्यात्मिक शक्ति बढ़ती है। 

उत्तर की ओर पैर रखकर सोने से धन की वृद्धि होती है एवं उम्र बढ़ती है। 

बेडरूम में टेबल गोल होना चाहिए।

बीम के नीचे व कालम के सामने नहीं सोना चाहिए।

बच्चों के बेडरूम में कांच नहीं लगाना चाहिए।

मिट्टी और धातु की वस्तुएं अधिक होना चाहिए।

ट्यूबलाइट की जगह लैम्प होना चाहिए।

फेंगशुई के अनुसार घर का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व व अग्नि कोण के द्वार का रंग सदैव हरा या ब्ल्यू रखना चाहिए। 

दक्षिण दिशा के प्रवेश द्वार का रंग हरालालबैंगनीकेसरिया होना चाहिए। नैऋत्य और ईशान कोण का प्रवेश द्वार हरे रंग का या पीला केसरी या बैंगनी होना चाहिए। पश्चिम और वायव्य दिशा का प्रवेश द्वार सफेद या सुनहरा होना चाहिए। 

उत्तर दिशा का प्रवेश द्वार आसमानी सुनहरा या काला होना चाहिए।

वास्तु-फेंगशुई : जानिए कछुए को क्यों रखें घर में..

वास्तु फेंगशुई के अनुसार कछुआ उत्तर दिशा का संरक्षक है। 
घर की उत्तर दिशा में धातु की प्लेट में पानी भरकर एक कछुआ रखें। कछुए का मुंह उत्तर दिशा में होना चाहिए। कछुआ उम्र को बढ़ाने वाला और जीवन में प्रगति दिलाने वाला होता है। 

वास्तुशास्त्र में भी है पालतू पशु-पक्षी का महत्व

आज के हाईटेक युग में भी अधिकांश लोग किसी प्राणी के रंग के साथ शगुन-अपशगुन को जोड़कर देखने का प्रयत्न करते हैं। घर में कोई प्राणी या पक्षी पालने के पहले अक्सर ज्योतिष-वास्तुशास्त्र की सलाह ली जाती है। प्राणियों और पक्षियों में अनिष्ट तत्वों को काबू में रखने की अद्भुत शक्तियाँ होती हैं। इस ब्रह्मांड में व्याप्त नकारात्मक शक्तियों को निष्क्रिय बनाने की ताकत इन पालतू प्राणियों में होती है। 
 

मानव का सबसे वफादार मित्र कुत्ता भी नकारात्मक शक्तियों को खत्म कर सकता है। उसमें भी काला कुत्ता सबसे ज्यादा उपयोगी सिद्ध होता है। प्रसिद्ध ज्योतिषी जयप्रकाश लाल धागेवाले कहते हैं- 'यदि संतान की प्राप्ति नहीं हो रही हो तो काले कुत्ते को पालने से संतान की प्राप्ति होती है।वैसे काले रंग से बहुतों को चिढ़ हो सकती हैपर यह शुभ है। 

तद्नुसार काले कौवे को भोजन करने (कराने) से अनिष्ट व शत्रु का नाश होता है। अलबत्ता कौवा बहुत डरपोक होता है और मानव से बहुत घबराता है। कौवे को एक ही आंख से दिखाई देता है। 

शुक्र देवता भी एकांक्षी हैं। शुक्र जैसे ही शनि देवता हैं। उनकी भी एक ही दृष्टि है। अतः शनि को प्रसन्न करना हो तो कौवों को भोजन कराना चाहिए। घर की मुंडेर पर कौवा बोले तो मेहमान जरूर आते हैं। परंतु यह भी कहा गया कि कौवा घर की उत्तर दिशा में बोले तो घर में लक्ष्मी आती हैपश्चिम दिशा में मेहमानपूर्व में शुभ समाचार और दक्षिण दिशा में बोले तो माठा (बुरा) समाचार आता है। 

 हमारे शास्त्रों में गाय के संबंध में अनेक बातें लिखी हुई हैं जैसे- शुक्र की तुलना सुंदर स्त्री से की जाती है। इसे गाय के साथ भी जोड़ते हैं। अतः शुक्र के अनिष्ट से बचने के लिए गौ-दान का प्रावधान है। जिस भू-भाग पर मकान बनाना हो तो पंद्रह दिन तक गाय-बछड़ा बांधने से वह जगह पवित्र हो जाती है। भू-भाग से बहुत सी आसुरी शक्तियों का नाश हो जाता है। 

तोते का हरा रंग बुध ग्रह के साथ जोड़कर देखा जाता है। अतः घर में तोता पालने से बुध की कुदृष्टि का प्रभाव दूर होता है। घोड़ा पालना भी शुभ है। सभी लोग घोड़ा पाल नहीं सकते फिर काले घोड़े की नाल को घर में रखने से शनि के कोप से बचा जा सकता है। 

मछलियों को पालने व आटे की गोलियां खिलाने से अनेक दोष दूर होते हैं। इसके लिए सात प्रकार के अनाज के आटे का पिंड बना लें। अपनी उम्र के वर्ष बराबर बार पिंड को शरीर से उतार लें। फिर अपनी उम्र जितनी गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं। 

घर में फिश-पॉट (मछली पात्र) रखने की सलाह भी देते हैं जो सुख-समृद्धिदायक है। कहा जाता है कि मछली अपने मालिक पर आने वाली विपदा को अपने ऊपर ले लेती है।

कबूतरों को शिव-पार्वती के प्रतीक रूप माना जाता हैपरंतु वास्तुशास्त्र की दृष्टि से कबूतर बहुत अपशगुनी माना जाता है। 

दुनिया के अधिकांश देशों में बिल्ली का दिखना अपशगुन माना जाता है। काली बिल्ली को अंधकार का प्रतीक माना जाता है।

अनोखी बात यह भी है कि ब्रिटेन में काली बिल्ली को शुभ माना जाता है।

अंत में कुत्ते के बारे में एक बात और यह कि कुत्ता पालने से लक्ष्मी आती है और कुत्ता घर के रोगी सदस्य की बीमारी अपने ऊपर ले लेता है।

गुरुवार को हाथी को केले खिलाने से राहु और केतु के नकारात्मक प्रभाव दूर होते हैं। 

 

 

सीढ़ियों में हो वास्तु दोष तो यह जरूर करें...

तरक्की चाहते हैं तो घर की सीढ़ी पर ध्यान दें 
  
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की सीढ़ियों से तरक्की की ऊंचाई पर भी पहुंचा जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि घर की सीढ़ी वास्तु नियमों के अनुसार बनी हो। सीढ़ी में वास्तुदोष होने पर तरक्की के बजाय नुकसान उठाना पड़ सकता है।

 वास्तुशास्त्र के नियम के अनुसार सीढ़ियों का निर्माण उत्तर से दक्षिण की ओर अथवा पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर करवाना चाहिए। जो लोग पूर्व दिशा की ओर से सीढ़ी बनवा रहे हों उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सीढ़ी पूर्व दिशा की दीवार से लगी हुई नहीं हो। पूर्वी दीवार से सीढ़ी की दूरी कम से कम 3 इंच होने पर घर वास्तुदोष से मुक्त होता है।

 सीढ़ी के लिए नैऋत्य यानी दक्षिण दिशा उत्तम होती है। इस दिशा में सीढ़ी होने पर घर प्रगति की ओर अग्रसर रहता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण में सी‍ढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए। इससे आर्थिक नुकसानस्वास्थ्य की हानिनौकरी एवं व्यवसाय में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दिशा में सीढ़ी का होना अवनति का प्रतीक माना गया है। दक्षिण पूर्व में सी‍ढ़ियों का होना भी वास्तु के अनुसार नुकसानदेय होता है। इससे बच्चों के स्वास्थ्य में उतार-चढ़ाव बना रहता है।

 जो लोग खुद ग्राउंड फ्लोर पर रहते हैं और किराएदारों को ऊपरी मंजिल पर रखते हैं उन्हें मुख्य द्वार के सामने सी‍ढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए। वास्तु विज्ञान के अनुसार इससे किराएदार दिनोदिन उन्नति करते और मालिक की परेशानी बढ़ती रहती है।

सी‍ढ़ियों के वास्तुदोष को दूर करने के उपाय

1. सी‍ढ़ियों के आरंभ और अंत में द्वार बनवाएं।

2. सीढ़ी के नीचे जूते-चप्पल एवं घर का बेकार सामान नहीं रखें।

3. मिट्टी के बर्तन में बरसात का जल भरकर उसे मिट्टी के ढक्कन से ढंक दें।

वास्तुदोष से बचने के लिए अपनाएं कुछ खास टिप्स

अगर आप स्थानाभाव की वजह से रसोईघर को स्टोर अथवा भंडारण कक्ष के रूप में इस्तेमाल की योजना बना रहे हैंतो ध्यान रखें ईशान व आग्नेय कोण के मध्य पूर्वी दीवार के पास के स्थान का उपयोग करें। चूल्हा या गैस आग्नेय कोण में ही रखें।

 - वास्तुदोष से बचने के लिए ध्यान रखें कि दरवाजे व खिड़कियों की संख्या विषम न होने पाएं। इनकी संख्या सम यानी 2, 4, 6, 8 आदि रखें।

 - घर में आंगन मध्य में ऊंचा तथा चारों ओर से नीचा होना चाहिए। यदि आपका आंगन वास्तु के अनुरूप न होतो उसे फौरन बताए गए तरीके से पूर्ण करवा लें। ध्यान रखें आंगन मध्य में नीचा व चारों ओर ऊंचा भूलकर भी न रखें।

 - कोई भूखंड उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर विस्तृत हो तथा भवन का निर्माण उत्तरी भाग में हुआ हो तथा भूखंड का दक्षिणी भाग खाली पड़ा हो तो वास्तु में यह स्थिति अत्यंत दोषपूर्ण होती है।

 - इस दोषपूर्ण स्थिति के चलते भूस्वामी को कष्टों तथा परेशानियों को झेलना पड़ता है। भूस्वामी को व्यापार में तथा कारोबार में हानि होती है। परिवार में तनाव का माहौल बना रहता है।

 - इस स्थिति में वास्तु दोष से बचने के लिए भवन के दक्षिण-पश्चिम कोण यानी नैऋत्य कोण में एक आउट हाउस को मुख्य भवन से ऊंचा बनवाएं और उसके फर्श को भी भवन के फर्श से ऊंचा रखें। आउट हाउस के दक्षिण या पश्चिम दिशा में कोई भी द्वार न रखें।

 - मुख्य द्वार के सामने अंदर की तरफ आईना लगाना गलत है। ऐसा करने पर घर के अंदर प्रवेश करने वाली ऊर्जा परावर्तित होकर द्वार से बाहर निकल जाती है।

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मुख्य द्वार के ठीक सामने अंदर कोई दीवार हो। पर फिर भी उस पर आईना न लगाएं और दीवार पर ऊपर से नीचे तक गहराई का आभास देने वाला कोई प्राकृतिक दृश्य चित्र लगाएं। यह जंगल में दूर-दूर तक दिखाई देने वाली सड़क का चित्र भी हो सकता है।

आरोग्य चाहिए तो घर के वास्तु पर ध्यान दें

'वास्तुशब्द का अर्थ है- निवास करना। जिस भूमि पर मनुष्य निवास करते हैंउसे वास्तु कहा जाता है। वास्तुशास्त्र में गृह निर्माण संबंधी विविध नियमों का प्रतिपादन किया गया है। उनका पालन करने से मनुष्य को अन्य कई प्रकार के लाभों के साथ-साथ आरोग्य लाभ भी होता है। 

गृह में जल स्थान- कुआं या भूमिगत टंकी पूर्वपश्चिमउत्तर अथवा ईशान दिशा में होनी चाहिए। जलाशय या ऊर्ध्व टंकी उत्तर या ईशान दिशा में होनी चाहिए.....। 

 यदि घर के दक्षिण दिशा में कुआं हो तो अद्भुत रोग होता है। नैऋत्य दिशा में कुआं होने से आयु का क्षय होता है। 

 घर में कमरों की स्थिति- यदि एक कमरा पश्चिम और एक कमरा उत्तर में हो तो वह गृहस्वामी के लिए मृत्युदायक होता है। इसी तरह पूर्व और उत्तर दिशा में कमरा हो तो आयु का ह्रास होता है। पूर्व और दक्षिण दिशा में कमरा हो तो वातरोग होता है। यदि पूर्वपश्चिम और उत्तर दिशा में कमरा होपर दक्षिण में कमरा न हो तो सब प्रकार के रोग होते हैं। 

 गृह के आंतरिक कक्षस्नान घर 'पूर्वमेंरसोई 'आग्नेयमेंशयनकक्ष 'दक्षिणमेंशस्त्रागारसूतिकागृहगृह-सामग्री और बड़े भाई या पिता का कक्ष 'नैऋत्यमेंशौचालय 'नैऋत्य', 'वायव्यया 'दक्षिण-नैऋत्यमेंभोजन करने का स्थान 'पश्चिममेंअन्न-भंडार तथा पशुगृह 'वायव्यमेंपूजागृह 'उत्तरया 'ईशानमेंजल रखने का स्थान 'उत्तरया 'ईशानमेंधन का संग्रह 'उत्तरमें और नृत्यशाला 'पूर्वपश्चिमवायव्य या आग्नेयमें होनी चाहिए। घर का भारी सामान नैऋत्य दिशा में रखना चाहिए। 

 .ईशान दिशा में पति-पत्नी शयन करें तो रोग होना अवश्यंभावी है। सदा पूर्व या दक्षिण की तरफ सिर करके सोना चाहिए। उत्तर या पश्चिम की तरफ सिर करके सोने से शरीर में रोग होते हैं तथा आयु क्षीण होती है।

 दिन में उत्तर की ओर तथा रात्रि में दक्षिण की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग करना चाहिए। दिन में पूर्व की ओर तथा रात्रि में पश्चिम की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग करने से आधा सीसी रोग होता है। 

 दिन के दूसरे और तीसरे पहर यदि किसी वृक्षमंदिर आदि की छाया मकान पर पड़े तो वह रोग उत्पन्न करती है।

 एक दीवार से मिले हुए दो मकान यमराज के समान गृहस्वामी का नाश करने वाले होते हैं। 

 किसी मार्ग या गली का अंतिम मकान कष्टदायी होता है। 

 उन्नति में चार चांद लगाते हैं पेड़-पौधे

सकारात्मक ऊर्जा देते हैं पेड़-पौधे  

 पेड़-पौधे न सिर्फ घर को आकर्षक बनाते हैं बल्कि हमारे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करते हैं। कई ऐसे पौधे भी है जो आपकी उन्नति में चार चांद भी लगाते हैं। 

 अपने घर में एक तुलसी का पौधा जरूर लगाएं। इसे उत्तरपूर्व या उत्तर-पूर्वी दिशा में लगाएं या फिर घर के सामने भी लगा सकते हैं।

 पेड़ को घर के मुख्य द्वार पर कभी भी न लगाएं। 

 घर में नीमचंदननींबूआमआंवलाअनार आदि के पेड़-पौधे अपने घर में लगाए जा सकते हैं। 

 इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके आंगन में लगे पेड़ों की गिनती 2, 4, 6, 8... जैसे इवन नंबर्स में होनी चाहिए। ऑड नंबर्स मे नहीं। 

 पेड़ों को घर की दक्षिण या पश्चिम दिशा में लगाएं। वैसे कायदे से पेड़ सिर्फ एक दिशा में ही न लग कर इन दोनों दिशाओं में लगे होने चाहिए। 

 कांटों वाले पौधों को अपने घर में न ही लगाएं तो अच्छा है। गुलाब के अलावा अन्य कांटों वाले पौधे घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। 

वास्तु शास्त्र से पहचानें शुभ पेड़-पौधे

वास्तु : पेड़-पौधों के आधार पर करें भूमि का चयन 
 
जिस भूमि पर तुलसी के पौधे लगे हों वहां भवन निर्माण करना उत्तम है तुलसी का पौधा अपने चारों ओर का 50 मीटर तक का वातावरण शुद्ध रखता हैक्योंकि शास्त्रों में यह पौधा बहुत ही पवित्र एवं पूजनीय माना गया है।

भारतीय संस्कृति में वृक्षों का अपना महत्वपूर्ण स्थान रहा है। आयुर्वेद के जनक महर्षि चरक ने भी  वातावरण की शुद्धता के लिए विशेष वृक्षों का महत्व बताया है। अंततोगत्वा भूमि पर उत्पन्न होने वाले वृक्षों के आधार पर भूमि का चयन किया जाता है। 

कांटेदार वृक्ष घर के समीप होने से शत्रु भय होता है। दूध वाला वृक्ष घर के समीप होने से धन का नाश होता है। फल वाले वृक्ष घर के समीप होने से संतति का नाश होता है। इनके काष्ठ भी घर पर लगाना अशुभ हैं। कांटेदार आदि वृक्षों को काटकर उनकी जगह अशोकपुन्नाग व शमी रोपे जाएं तो उपर्युक्त दोष नहीं लगता है।

पाकरगूलरआमनीमबहेड़ा तथा काँटेदार वृक्षपीपलअगस्तइमली ये सभी घर के समीप निंदित  कहे गए हैं। 

भवन निर्माण के पहले यह भी देख लेना चाहिए कि भूमि पर वृक्षलतापौधेझाड़ीघासकांटेदार वृक्ष  आदि नहीं हों। 

 *जिस भूमि पर पपीताआंवलाअमरूदअनारपलाश आदि के वृक्ष बहुत हों वह भूमिवास्तुशास्त्र में बहुत श्रेष्ठ बताई गई है। 

जिन वृक्षों पर फूल आते रहते हैं और लता एवं वनस्पतियां सरलता से वृद्धि करती हैं इस प्रकार की  भूमि भी वास्तुशास्त्र में उत्तम बताई गई है। 

जिस भूमि पर कंटीले वृक्षसूखी घासबैर आदि वृक्ष उत्पन्न होते हैं। वह भूमि वास्तु में निषेध बताई  गई है। 

जो व्यक्ति अपने भवन में सुखी रहना चाहते हैं उन्हें कभी भी उस भूमि पर निर्माण नहीं करना चाहिए,  जहां पीपल या बड़ का पेड़ हो। 

सीताफल के वृक्ष वाले स्थान पर भी या उसके आसपास भी भवन नहीं बनाना चाहिए। इसे भी  वास्तुशास्त्र ने उचित नहीं माना हैक्योंकि सीताफल के वृक्ष पर हमेशा जहरीले जीव-जंतु का वास होता  है। 

जिस भूमि पर तुलसी के पौधे लगे हों वहां भवन निर्माण करना उत्तम है तुलसी का पौधा अपने चारों  ओर का 50 मीटर तक का वातावरण शुद्ध रखता हैक्योंकि शास्त्रों में यह पौधा बहुत ही पवित्र एवं  पूजनीय माना गया है। 

भवन के निकट वृक्ष कम से कम दूरी पर होना चाहिए ताकि दोपहर की छाया भवन पर न पड़े। 

सिर्फ अशुभ नहींशुभ भी होता है दक्षिण दिशा का भवन

दक्षिण दिशा के शुभाशुभ प्रभाव जानिए 

जिस तरह मनुष्य की पांच ज्ञानेंद्रियां मानी गई हैंउसी प्रकार वास्तु की भी पांच ज्ञानेन्द्रिय होती हैं। ये इस प्रकार हैं- हवावातावरणजलभूमि और वृक्ष। इनके संतुलन द्वारा शुभ-वास्तु का जन्म होता है। वास्तु में दरवाजेखिड़कीशयन कक्षसभागृह और रसोईगृह उचित दिशा में न हों तो कुछेक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
वास्तु के कई भ्रमों को दूर करना चाहिए। इनमें एक है दक्षिण दिशा का मकान। दक्षिण दिशा का मकान हो तो अशुभ होने की आशंका रहती (मानी जाती) है। परंतु यह भ्रम है।



भारत के शहरों के इतिहास देखें तो दक्षिण दिशा ने इतनी प्रगति की हैजितनी अन्य दिशाओं ने नहीं की। संपन्नता दक्षिण दिशा में भी प्राप्त होती है। रावण की लंका और भारत के स्वर्ण भंडार इसके उदाहरण हैं। 

गृह से संबंधित कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। जैसे घर के अंदर उत्तर-पूर्व में टॉयलेट (शौचालय) नहीं होना चाहिए। इससे शारीरिक कष्ट होने या बढ़ने की संभावना मानी जाती है। रसोई कक्ष पूर्व-दक्षिण (आग्नेय) कोण में होना चाहिए।

इसी तरह बेडरूम (शयन कक्ष) दक्षिण-पश्चिम में होना अति उत्तम माना जाता है। खिड़कियां उत्तर या पूर्व में ही हों। दरवाजे के लिए पूर्व या उत्तर दिशा सर्वश्रेष्ठ बताई जाती है। स्त्री के नाम से मकान हो तो ऐसे मकान का द्वार दक्षिण दिशा की ओर हो तो सर्वोत्तम माना जाता हैजिसमें तिजोरी का दरवाजा भी दक्षिण दिशा की तरफ हो तो अति उत्तम माना जाता है। 

क्यों विशेष है उत्तर दिशा

वास्तु शास्त्र घर को व्यवस्थित रखने की कला का नाम है। इसके सिद्धांतनियम और फार्मूले किसी मंत्र से कम शक्तिशाली नहीं हैं।

आप वास्तु के अनमोल मंत्र अपनाइए और सदा सुखी रहिए।

उत्तर दिशा जल तत्व की प्रतीक है। इसके स्वामी कुबेर हैं। यह दिशा स्त्रियों के लिए अशुभ तथा अनिष्टकारी होती है। इस दिशा में घर की स्त्रियों के लिए रहने की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए।

उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र अर्थात्‌ ईशान कोण जल का प्रतीक है। इसके अधिपति यम देवता हैं। भवन का यह भाग ब्राह्मणोंबालकों तथा अतिथियों के लिए शुभ होता है।

उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र यानी वायव्य कोण वायु तत्व प्रधान है। इसके अधिपति वायुदेव हैं। यह सर्वेंट हाउस के लिए तथा स्थाई तौर पर निवास करने वालों के लिए उपयुक्त स्थान हैं।

उत्तर दिशा में निकास नालियां हों तो यह स्थिति भू-स्वामी के लिए बहुत ही शुभ तथा राज्य लाभ देने वाली होती है।

ईशानउत्तर-पूर्व कोण में जल प्रवाह की नालियां भू-स्वामी के लिए श्रेष्ठ तथा कल्याणकारी होती हैं। गृह स्वामी को धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होती है तथा आरोग्य लाभ होता है।

जीवन की खुशियों के लिए अपनाएं वास्तु टिप्स

हम सभी अपनी जिंदगी में सुख और समृद्धि चाहते हैं लेकिन रोजमर्रा में ऐसी गलतियां करते हैं जो वास्तु के अनुसार सही नहीं होती। आइए जानते हैं कुछ आसान टिप्स जिनसे घर में खुशियों का निवास बना रहे-  

वास्तु टिप्स : 

रात को कपड़े बाहर न सुखाएं। 

बंद घडियां घर में अशुभ होती है। 

झाडू-पोंछा और कूड़ादान हमेशा छुपा कर रखें। 

रसोई घर में पानी और चूल्हा पास ना रखें। 

मुख्य द्वार के सामने सीढ़ी नहीं होनी चाहिए। 

पति-पत्नी हमेशा एक ही तकिए पर सोएं। 

लंबे गलियारे में दर्पण जरूर लगाएं। 

सूखे फूल घर में कभी ना रखें। 

खाली दीवार की तरफ मुंह करके ना बैठें। 

दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्फटिक का झूमर टांगें। 

बच्चों की उन्नति चाहते हैं तो आजमाएं यह वास्तु टिप्स

वास्तु अनुरूप कैसे सजाएं बच्चों का रूम 

घर में बच्चों का कमरा पूर्वउत्तरपश्चिम या वायव्य में हो सकता है। दक्षिणनैऋत्य या आग्नेय में बच्चों का कमरा नहीं होना चाहिए। बच्चों के कमरे की सजावट पूर्ण रूप से उनके अनुकूल होनी आवश्यक है तभी वे निरोग रहते हुए उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर होंगे। सर्वप्रथम बच्चों के कमरे का रंग-रोगन पूर्ण रूप से उनके शुभ रंग के अनुसार होना चाहिए।

 

गृह स्वामी को अपने घर के संपूर्ण वास्तु-विचार के साथ अपने बच्चों के कमरे के वास्तु का भी ध्यान रखना चाहिए। बच्चों की उन्नति के लिए उनका वास्तु अनुकूल ग्रह अथवा कमरे में निवास करना आवश्यक है।

घर में बच्चों का कमरा पूर्वउत्तरपश्चिम या वायव्य में हो सकता है। दक्षिणनैऋत्य या आग्नेय में बच्चों के कमरे की सजावट पूर्ण रूप से उनके अनुकूल होनी आवश्यक है तभी वे निरोग रहते हुए उच्च शिक्षा की ओर अग्रसर होंगे।

सर्वप्रथम बच्चों के कमरे का रंग-रोगन पूर्णरूप से उनके शुभ रंग के अनुसार होना चाहिए। आपके बच्चों की जन्मपत्रिका में लग्नेशद्वितीयेशपंचमेश ग्रहों में से जो सर्वाधिक रूप से बली हो अथवा बच्चे की राशीश ग्रह के अनुसार उसके कमरे का रंग तथा पर्दे होने चाहिए। 

यदि बच्चे एक या उससे अधिक हों तो जो बच्चा बड़ा हो तथा महत्वपूर्ण विद्यार्जन कर रहा होउस अनुसार दीवारों का रंग होना चाहिए। यदि दोनों हमउम्र हों तो उनके कमरे में दो भिन्न-भिन्न शुभ रंगों का प्रयोग किया जा सकता है।

पर्दों का रंग दीवार के रंग से थोड़ा गहरा होना चाहिए। बच्चों का पलंग अधिक ऊंचा नहीं होना चाहिए तथा वह इस तरह से रखा जाए कि बच्चों का सिरहाना पूर्व दिशा की ओर हो तथा पैर पश्चिम की ओर। बिस्तर के उत्तर दिशा की ओर टेबल एवं कुर्सी होनी चाहिए। पढ़ते समय बच्चे का मुंह पूर्व दिशा की ओर तथा पीठ पश्चिम दिशा की ओर होनी चाहिए। यदि कम्प्यूटर भी बच्चे के कमरे में रखना हो तो पलंग से दक्षिण दिशा की ओर आग्नेय कोण में कम्प्यूटर रखा जा सकता है।

यदि बच्चे के कमरे का दरवाजा ही पूर्व दिशा में हो तो पलंग दक्षिण से उत्तर की ओर होना चाहिए। सिरहाना दक्षिण में तथा पैर उत्तर में। ऐसी स्‍थिति में कम्प्यूटर टेबल के पास ही पूर्व की ओर स्टडी टेबल स्थित होनी चाहिए। नैऋत्य कोण में बच्चों की पुस्तकों की रैक तथा उनके कपड़ों वाली अलमारी होनी चाहिए।

यदि कमरे से ही जुड़े हुए स्नानागार तथा शौचालय रखना हो तो पश्चिम अथवा वायव्य दिशा में हो सकता है। बच्चों के कमरे में पर्याप्त रोशनी आनी चाहिए। व्यवस्था ऐसी हो कि दिन में पढ़ते समय उन्हें कृत्रिम रोशनी की आवश्यकता ही न हो। जहां तक संभव हो सकेबच्चों के कमरे की उत्तर दिशा बिलकुल खाली रखना चाहिए।

उनके किताबों की रैक नैऋत्य कोण में स्थित हो सकती है। खिड़कीएसी तथा कूलर उत्तर दिशा की ओर हो। बच्चों के कमरे में स्‍थित चित्र एवं पेंटिंग्स की स्‍थिति उनके विचारों को प्रभावित करती है इसलिए हिंसात्मकफूहड़ एवं भड़काऊ पेंटिंग्स एवं चि‍त्र बच्चों के कमरे में कभी नहीं होना चाहिए।

महापुरुषों के चित्रपालतू जानवरों के चित्रप्राकृतिक सौंदर्य वाले चित्र तथा पेंटिंग्स बच्चों के कमरे में हो सकती हैं। भगवान गणेश तथा सरस्वतीजी का चित्र कमरे के पूर्वी भाग की ओर होना चाहिए। इन दोनों की देवी-देवताओं को बुद्धिदाता माना जाता है अत: सौम्य मुद्रा में श्री गणेश तथा सरस्वती की पेंटिंग या चि‍त्र बच्चों के कमरे में अवश्य लगाएं। 

आपका बच्चा जिस क्षेत्र में करियर बनाने का सपना देख रहा हैउस करियर में उच्च सफलता प्राप्त व्यक्तियों के चित्र अथवा पेंटिंग्स भी आप अपने बच्चों के कमरे में लगा सकते हैं। यदि बच्चा छोटा होतो कार्टून आदि की पेंटिंग्स लगाई जा सकती है।

बच्चों के कमरे में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि घर में होने वाला शोरगुल उन्हें बिलकुल बाधित न करे अत: बच्चों के कमरे से घर की तरफ कोई खिड़की या झरोखा खुला हुआ नहीं होना चाहिए।

बच्चों की श्रेष्ठ उन्नति के लिए उनके कमरे का वास्तु के अनुकूल होना आवश्यक है। वास्तु अनुरूप परिवर्तन से आपके बच्चे के मानसिक विकास एवं उसकी ग्रहण क्षमता में शुभ परिवर्तन नजर आएगा। इस वास्तु परिवर्तन के पश्चात बच्चा मन लगाकर पढ़ेगा तथा उसका स्वास्थ्य भी अनुकूल रहेगा। 

रोचक और सरल वास्तु मंत्रआजमा कर देखें

भवन निर्माण में दरवाजे और खिड़कियां सम संख्या में हों तथा सीढ़ियां विषम संख्या में हों। 

टॉयलेट और किचन एक पंक्ति (कतार) में या आमने-सामने होना दोषकारक है। 

घर में गणेशजी की एक से अधिक मूर्ति हो तो कोई फर्क नहींपरंतु पूजा एक ही गणेशजी की हो। 

*  घर में गणपति की मूर्तिरंगोलीस्वस्तिक या ॐ का चिह्न बुरी आत्माओं के प्रभाव को नियंत्रित करता है। 

घर के बाहर या अंदर आशीर्वाद मुद्रा में देवी-देवता की मूर्ति अथवा चित्र लगाएं। ध्यान रहेउनका मुंह भवन के बाहर की तरफ हो। 

घर के ड्राइंगरूम में मोरबंदरशेरगायमृग आदि के चि‍त्र या मूर्ति रूप में किसी एक का जोड़ा रखें जिसका मुंह एक-दूसरे की तरफ हो तथा मुंह घर के अंदर होशुभ रहेगा। 

दक्षिण दिशा में घोड़ा (अश्व) रखना सर्वोत्तम है। 

असली स्फटिक बालश्रीयंत्रपिरामिड या कटिंग बाल को आप कहीं भी रख सकते हैं। (श्रीयं‍त्र को केवल घर के मंदिर में रखें।) 

धन-समृद्धि के लिए धन की पेटी (कैश बॉक्स) में ‍तीन सिक्के रखेंजो भाग्य की अभिवृद्धि में सहायक होंगे। 

घोड़े की नाल पश्चिमी देशों तथा हमारे देश में भी बहुत भाग्यशाली और शुभ मानी जाती है। अपनी सुरक्षा और सौभाग्य के लिए इसे अपने घर के मुख्य द्वार के ऊपर चौखट के बीच में लगा सकते हैं। 

*बीम के नीचे बिंदु चिप्स लगाकर बीम के दोष को दूर कर सकते हैं। 

संपत्ति तथा सफलता के लिए अपने बैठक कक्ष में पिरामिड को उत्तर-पूर्व में रखें।

प्रसिद्धि के लिए घर के दक्षिण क्षेत्र में लाल रंग का उपयोग करें एवं उसे लाल रंग की वस्तुओं से सजाएं। इससे परिवार में रहने वाले लोगों को खून से संबंधित बीमारियों से निजात मिल सकती हैकिंतु चि‍कि‍त्सीय भावना की उपेक्षा कष्टदायी हो सकती है। 

मुख्य द्वार पर कोई अवरोध (खंबाकोनापेड़) आदि हो तो उसके दोष निवारण हेतु बागुआ मिरर लगाएं। 

विवादों से संबंधित कागजात कभी भी आग्नेय दिशा में न रखें। ऐसे कागजात ईशान या वायव्य दिशा में रखें। 

पश्चिम-दक्षिणउत्तर-पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम दिशाओं को अन्य दिशाओं के मुकाबले ज्यादा से ज्यादा ढंका व भरा हुआ होना चाहिए तथा थोड़ा ऊंचा भी होना चाहिए। 

घर में कांटेदार पौधेयुद्ध के दृश्यसूखे पेड़जमीनआंसू बहाते प्राणीखूंखार जानवर आदि के चित्र न लगाएं। 

जिन लोगों का चूल्हा ईशान में हो और परिस्थितिजन्य हटाया नहीं जा सकेतो ऐसी विषम परिस्थिति में किचन में लाल बल्ब न जलाएं। 

बच्चों के कमरों में सुंदर प्राकृतिक दृश्य यथा समृद्ध हरे-भरे पहाड़जल विहार तथा महापुरुषों के चित्र लगाएं। नाइट लैम्प के रूप में हरे या नीले बल्ब का प्रयोग सुखद रहेगा। 

उत्तम भाग्य तथा पारिवारिक समृद्धि के लिए सुंदर रंगीन पर्देदीवार व छतों पर हल्के और मन लुभावने रंगों का प्रयोग करें। 

कॉर्नरबीम आदि की नकारात्मकता को समाप्त करने के लिए पेड़-पौधोंसीनरी व लाइट्स का प्रयोग पारिवारिक सुख-सौहार्द के लिए अनुकूलता प्रदान करेगा। 

व्यावसायिक कार्यालयों में दक्षिण दिशा में संस्थान के मालिक की फोटो लगाएं। 

पवन घंटियां घर में सौभाग्य बढ़ाने का अद्भुत स्रोत हैं। पवन घंटियां बैठक तथा घर में स्थापित मंदिर के दरवाजे पर लटकाने से शुभ्रता प्रदान करती है। 

मधुर संबंधों के लिए प्रसन्नचित मुद्रा में संयुक्त परिवार का फोटो लगाएं। 

घर में नमक मिले पानी से पोंछा लगाएं। यह घर में स्‍थित नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में सहायक होगा। 

पूर्वजों के चित्र उत्तर-पश्चिम में रखेंतो ज्यादा अच्‍छा होगा। 

अलमारी या कपड़ों की अलमारी दक्षिण दिशा को छोड़कर किसी भी दिशा में खुलनी चाहिए। दक्षिण की ओर खुलने वाली अलमारी में बहुमूल्य सामान या महत्वपूर्ण कागजात नहीं रखना चाहिए। 

उत्तर-पूर्व में रसोईघर नहीं होना चाहिए। 

*पिरामिड का उपयोग घर में कहीं भी नकारात्मक शक्ति को हटाने के लिए कर सकते हैं। 

बत्तख या कबूतर के जोड़े की तस्वीर को शयनकक्ष (बेडरूम) में रखने से संबंधों में मधुरता आती है। 

 * भवन निर्माण के समय ध्यान रखें कि दक्षिण-पश्चिम की दीवारें कुछ ऊंची होनी चाहिएभले वे 1 इंच होंपरिवार की सुख-समृद्धि के लिए सुखदायी रहेगी। 

जा‍निएकिस दिशा में सोने से बढ़ता है धन

किस दिशा में सोते हैं आप

जानिएअपार धन चाहिए तो किस दिशा में सोएं

नींद से हमारा गहरा रिश्ता है। जब हम सोते हैं तब हमारा अपने आप से रिश्ता कायम होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किस दिशा विशेष में सिर रखकर सोने से अपार धन और आरोग्य की वृद्धि होती है।

सदैव पूर्व या दक्षिण की ओर सिर करके सोना चाहिए।

पूर्व की ओर सिर करके सोने से विद्या की प्राप्ति होती है।

दक्षिण की ओर सिर करके सोने से धन तथा आयु की वृद्धि होती है।

पश्चिम की ओर सिर करके सोने से प्रबल चिंता होती है।

उत्तर की ओर सिर करके सोने से हानि तथा मृत्यु होती है अर्थात आयु क्षीण होती है

आपके घर का वास्तुदोष दूर करेंगे श्रीगणेश

यदि घर के मुख्य द्वार पर श्रीगणेश की प्रतिमा या चित्र लगाया जाए तो घर के सभी वास्तु दोषों का शमन होता है। 
इसके लिए यह भी ध्यान रखना होगा कि जहां पर श्रीगणेश का चित्र लगाया गया हैउसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर गणेश जी की प्रतिमा या चित्र इस प्रकार लगाए कि दोनों गणेशजी की एक-दूसरे से पीठ मिली रहे।
इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है। इस तरह आप बिना किसी तोड़-फोड़ के श्रीगणेश के पूजन से घर के वास्तुदोष को ठीक कर सकते हैं।

एक दूसरे उपाय के अनुसार आपके मकान या फ्लैट के जिस भाग में वास्तु दोष हैवहां सिंदूर में घी मिलाकर उस स्थान पर स्वास्तिक बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव काफी हद तक कम हो जाता है और जीवन में खुशियों का संचार होता है। 

गणेशजी कैसे दूर करते हैं वास्तुदोष

वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्माजी ने वास्तुशास्त्र के नियमों की रचना की थी। इनकी अनदेखी करने पर उपयोगकर्ता की शारीरिकमानसिकआर्थिक हानि होना निश्चित रहता है। वास्तुदेवता की संतुष्टि गणेशजी की आराधना के बिना अकल्पनीय है। 

गणपतिजी का वंदन कर वास्तुदोषों को शांत किए जाने में किसी प्रकार का संदेह नहीं है। नियमित गणेशजी की आराधना से वास्तु दोष उत्पन्न होने की संभावना बहुत कम होती है। यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है।

भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है। घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैं। किन्तु यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुँह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं होना चाहिए। सुखशांतिसमृद्धि की चाह रखने वालों के लिए सफेद रंग के विनायक की मूर्तिचित्र लगाना चाहिए। 

सर्व मंगल की कामना करने वालों के लिए सिन्दूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र में उनके बाएं हाथ की और सूंड घुमी हुई हो इस बात का ध्यान रखना चाहिए। दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी हठी होते हैं तथाउनकी साधना-आराधना कठिन होती है। वे देर से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं। मंगल मूर्ति को मोदक एवं उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है। अतः चित्र लगाते समय ध्यान रखें कि चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा अवश्य होना चाहिए। 

घर में बैठे हुए गणेशजी तथा कार्यस्थल पर खड़े गणपतिजी का चित्र लगाना चाहिएकिन्तु यह ध्यान रखें कि खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए हों। इससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है। भवन के ब्रह्म स्थान अर्थात केंद्र मेंईशान कोण एवं पूर्व दिशा में सुखकर्ता की मूर्ति अथवा चित्र लगाना शुभ रहता है। किन्तु टॉयलेट अथवा ऐसे स्थान पर गणेशजी का चित्र नहीं लगाना चाहिए जहां लोगों को थूकने आदि से रोकना हो। यह गणेशजी के चित्र का अपमान होगा।

वास्तुदोष भी दूर करते हैं भगवान श्री गणेश

सुखशांति और समृद्धि के लिए गणेशजी को रखें घर में

बिना तोड़-फोड़ वास्तुदोष दूर करना है तो पूजें श्री गणेश को

वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ।
नि‍र्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।
कई वास्तुदोषों का निवारण भगवान गणपति जी की पूजा से होता है। वास्तु पुरुष की प्रार्थना पर ब्रह्माजी ने वास्तुशास्त्र के नियमों की रचना की थी। 

यह मानव कल्याण के लिए बनाया गया था इसलिए इनकी अनदेखी करने पर घर के सदस्यों को शारीरिकमानसिकआर्थिक हानि भी उठानी पड़ती है अत: वास्तु देवता की संतुष्टि के लिए भगवान गणेश को पूजना बेहतर है। 

श्री गणेश की आराधना के बिना वास्तु देवता को संतुष्ट नहीं किया जा सकता। बिना तोड़-फोड़ अगर वास्तु दोष को दूर करना चाहते हैं तो इन्हें आजमाइए।

सुखसमृद्धि व प्रगति :- 

यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो हो सके तो दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर गणेशजी की प्रतिमा इस प्रकार लगाएं कि दोनों गणेशजी की पीठ मिलती रहे। 

इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा का चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है। भवन के जिस भाग में वास्तु दोष होउस स्‍थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है।

दक्षिण व नैऋत्य कोण और श्री गणेश :- 

घर या कार्यस्थल के किसी भी भाग में वक्रतुंड की प्रतिमा अथवा चित्र लगाए जा सकते हैंकिंतु प्रतिमा लगाते समय यह ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋत्य कोण में नहीं हो। इसका विपरीत प्रभाव होता है।

घर में बैठे हुए गणेशजी तथा कार्यस्थल पर खड़े गणेशजी का चित्र लगाना चाहिए। किंतु यह ध्यान रखें कि खड़े गणेशजी के दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते हुए होंइससे कार्य में स्थिरता आने की संभावना रहती है।

भवन के ब्रह्म स्थान अर्थात केंद्र मेंईशान कोण एवं पूर्व दिशा में सुखकर्ता की मूर्ति अथवा चि‍त्र लगाना शुभ रहता है। गणेशजी का चित्र नहीं लगाना चाहिएजहां लोगों को थूकने आदि से रोकना हो। सुखशांतिसमृद्धि की चाह रखने वालों के लिए सफेद रंग के विनायक की मूर्तिचित्र लगाना चाहिए।

हर अवसर पर शुभ सिंदूरी गणेश :- 

सर्व मंगल की कामना करने वालों के लिए सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है। विघ्नहर्ता की मूर्ति अथवा चित्र में उनके बाएं हाथ की ओर सूंड घुमी हुई होइस बात का ध्यान रखना चाहिए।

दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी हठी होते हैं तथा उनकी साधना-आराधना कठिन होती है।

जरूरी है लड्डू और चूहा :- 

मंगलमूर्ति भगवान को मोदक एवं उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है अत: घर में चित्र लगाते समय ध्यान रखें कि चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा अवश्य होना चाहिए। 

इस तरह आप भी बिना तोड़-फोड़ के गणपति पूजन द्वारा वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं।

वास्तु शास्त्र के अनुसार कैसे हो भगवान गणेश

वास्तु में वर्णित है हर कामना के खास गणपति

वास्तु में गणपति की मूर्ति एकदोतीनचार और पांच सिरों वाली पाई जाती है। इसी तरह गणपति के 3 दांत पाए जाते हैं। सामान्यत: आंखें पाई जाती हैंकिंतु तंत्र मार्ग संबंधी मूर्तियों में तीसरा नेत्र भी देखा गया है। 

भगवान गणेश की मूर्तियां 2, 4, 8 और 16 भुजाओं वाली भी पाई जाती हैं। 14 प्रकार की महाविद्याओं के आधार पर 12 प्रकार की गणपति प्रतिमाओं के निर्माण से वास्तु जगत में तहलका मच गया है।

संतान गणपति- भगवान गणपति के 1008 नामों में से संतान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिए जिनके घर में संतान नहीं हो रही हो। वे लोग संतान गणपति की विशिष्ट मंत्र पूरित प्रतिमा द्वार पर लगाएं जिसका प्रतिफल सकारात्मक होता है।

विघ्नहर्ता गणपति- विघ्नहर्ता भगवान गणपति की प्रतिमा उस घर में स्थापित करनी चाहिएजिस घर में कलहविघ्नअशांतिक्लेशतनावमानसिक संताप आदि दुर्गुण होते हैं। पति-पत्नी में मनमुटावबच्चों में अशांति का दोष पाया जाता है। ऐसे घर में प्रवेश द्वार पर मूर्ति स्थापित करनी चाहिए।

विद्या प्रदायक गणपति- बच्चों में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी पैदा करने के लिए गृहस्वामी को विद्या प्रदायक गणपति अपने घर के प्रवेश द्वार पर स्थापित करना चाहिए।

विवाह विनायक- गणपति के इस स्वरूप का आह्वान उन घरों में विधि-विधानपूर्वक होता हैजिन घरों में बच्चों के विवाह जल्द तय नहीं होते।

चिंतानाशक गणपति- जिन घरों में तनाव व चिंता बनी रहती हैऐसे घरों में चिंतानाशक गणपति की प्रतिमा को 'चिंतामणि चर्वणलालसाय नम:जैसे मंत्रों का सम्पुट कराकर स्थापित करना चाहिए।

धनदायक गणपति- आज हर व्यक्ति दौलतमंद होना चाहता है इसलिए प्राय: सभी घरों में गणपति के इस स्वरूप वाली प्रतिमा को मंत्रों से सम्पुट करके स्थापित किया जाता है ताकि उन घरों में दरिद्रता का लोप होसुख-समृद्धि व शांति का वातावरण कायम हो सके।

सिद्धिनायक गणपति- कार्य में सफलता व साधनों की पूर्ति के लिए सिद्धिनायक गणपति को घर में लाना चाहिए।

सोपारी गण‍पति- आध्यात्मिक ज्ञानार्जन हेतु सोपारी गण‍पति की आराधना करनी चाहिए।

शत्रुहंता गण‍पति- शत्रुओं का नाश करने के लिए शत्रुहंता गणपति की आराधना करना चाहिए।

आनंददायक गणपति- परिवार में आनंदखुशीउत्साह व सुख के लिए आनंददायक गणपति की प्रतिमा को शुभ मुहूर्त में घर में स्‍थापित करना चाहिए।

विजय सिद्धि गणपति- मुकदमे में विजयशत्रु का नाश करनेपड़ोसी को शांत करने के उद्देश्य से लोग अपने घरों में 'विजय स्थिराय नम:जैसे मंत्र वाले बाबा गणपति की प्रतिमा के इस स्वरूप को स्था‍पित करते हैं।

ऋणमोचन गणपति- कोई पुराना ऋणजिसे चुकता करने की स्थिति में न होतो ऋण मोचन गणपति घर में लगाना चाहिए।

रोगनाशक गणपति- कोई पुराना रोग होजो दवा से ठीक न होता हैउन घरों में रोगनाशक गणपति की आराधना करनी चाहिए।

नेतृत्व शक्ति विकासक गण‍पति- राजनीतिक परिवारों में उच्च पद प्रतिष्ठा के लिए लोग गणपति के इस स्वरूप की आराधना प्राय: इन मंत्रों से करते हैं- 'गणध्याक्षाय नम:गणनायकाय नम: प्रथम पूजिताय नम:।'

भगवान श्री गणेश

शास्त्रों के अनुसार प्रथम पूज्य श्री गणेश को परिवार का देवता माना गया है। परिवार की किसी भी प्रकार की परेशानी के लिए गणेशजी की आराधना श्रेष्ठ उपाय है। वहीं वास्तु में भी श्री गणेश की प्रतिमा को वास्तुदोष दूर करने का अचूक उपाय बताया गया है।

वास्तु के अनुसार घर में विघ्न विनाशक श्री गणेश की प्रतिमा रखना बहुत शुभ माना जाता है। जहां गणेशजी की प्रतिमा रहती है उस क्षेत्र में किसी भी प्रकार का वास्तुदोष सक्रीय नहीं हो पाता। साथ ही घर के आसपास भी नकारात्मक ऊर्जा भी प्रभाव नहीं दिखा पाती। इनकी प्रतिमा के शुभ प्रभाव से परिवार के सभी सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है और सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।

घर में श्रीगणेश की प्रतिमा कहां रखनी चाहिएइस संबंध में वास्तु के अनुसार इनकी मूर्ति ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में लगानी चाहिए। नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) में श्रीगणेश की मूर्ति शुभ प्रभाव नहीं देती।

घर के पूजन स्थल पर गणेशजी की बाएं हाथ की ओर सूंड वाली मूर्ति बहुत शुभ मानी जाती है। घर में जहां वास्तु दोष हो वहां सिंदूर से स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं। साथ घर के मुख्य द्वार गणेशजी की प्रतिमा या उनका प्रतिक चिन्ह स्वस्तिक बनाएं।

घर की सजावट बढ़ाने के लिए दीवारों पर फोटो लगाए जाते हैं। इनसे घर की सुंदरता तो बढ़ती है साथ ही मन को सुकून भी मिलता है लेकिन दीवारों पर कैसे फोटो लगाए जाने चाहिएइस संबंध में वास्तु में कई आवश्यक बिंदू बताए गए हैं।

सरल और उपयोगी वास्तु टिप्सअवश्य पढ़ें

ईशान कोण यानी भवन के उत्तर-पूर्वी हिस्से वाला कॉर्नर पूजास्थल होकर पवित्रता का प्रतीक है इसलिए यहां झाड़ू-पोंछाकूड़ादान नहीं रखना चाहिए।

प्रात:काल नाश्ते से पूर्व घर में झाड़ू अवश्य लगानी चाहिए।

संध्या समय जब दोनों समय मिलते हैंघर में झाड़ू-पोंछे का काम नहीं करना चाहिए।

घर में जूतों का स्थान प्रवेश द्वार के दाहिने तरफ न रखें।

घर में टूटे दर्पणटूटी टांग का पाटा तथा किसी बंद मशीन का रखा होना सुख-समृद्धि की दृष्टि से अशुभकारक है।

घर के अग्रभाग के दाएं ओर कमरे में जेवरगहनेसोने-चांदी का सामानलक्जरी आर्टिकल्स रखने से खुशियां प्राप्त होती हैं।

ड्राइंग-हॉल को अपने बेडरूम की तरह उपयोग में लेने पर पतिपत्नी को प्यार करता है और दोस्तों से अच्छे संबंध रखता है।

अनाज वाले कमरे में गहनेपैसेकपड़े रखने वाला गृहस्वामी पैसा उधार देने का काम करता है या भौतिक सुख-सुविधा की चीजें या बड़े सौदों से अर्जन करता है।

घर के मुख्य द्वार पर शुभ चिह्न अंकित करना चाहिए। इससे सुख-समृद्धि बनी रहती है।

घर में पूजास्थल में एक जटा वाला नारियल रखना चाहिए।

घर में सजावट में हाथीऊंट को सजावटी खिलौने के रूप में उपयोग शुभ होता है।

ऐसे शयनकक्ष जिनमें दंपति सोते हैंवहां हंसों के जोड़े अथवा सारस के जोड़े के चित्र लगाना अति शुभ माना गया है। ये चित्र शयनकर्ताओं के सामने रहेंइस तरह लगाना चाहिए।

घर के ईशान कोण पर कूड़ा-करकट भी इकट्ठा न होने दें।
घर में देवस्थल पर अस्त्र-शस्त्रों को रखना अशुभ है।
घर में तलघर में परिवार के किसी भी सदस्यों के फोटो न लगाएं तथा वहां भगवान और देवी-देवताओं की तस्वीरें या मूर्तियां भी न रखें।
तीन व्यक्तियों का एक सीध में एकाकी फोटो होतो उसे घर में नहीं रखें और न ही ऐसे फोटो को कभी भी दीवार पर टांगें।

सरल वास्तु टिप्स 1 : क्या करेंक्या न करें

स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करें

भवन निर्माण या वास्तु दोषों से मुक्ति हेतु कुछ वैज्ञानिक प्रयासों को अंजाम देकर परिवार में सुखशांति और व्यापारिक संस्थानों को श्रीसमृद्धि से युक्त बनाया जा सकता है। वास्तु टिप्स का लाभ उठा कर अपने बौद्धिक साहस का परिचय दीजिए। चमत्कारों का सूर्य आपको आभायुक्त बना देगा।

भवन निर्माण में दरवाजे और खिड़कियां सम संख्या में हों तथा सीढ़ियां विषम संख्या में हों।

टॉयलेट और किचन एक पंक्ति (कतार) में या आमने-सामने होना दोषकारक है।

घर में गणेशजी की एक से अधिक मूर्ति हो तो कोई फर्क नहींपरंतु पूजा एक ही गणेशजी की हो। घर में गणपति की मूर्तिरंगोलीस्वस्तिक या ॐ का चिह्न बुरी आत्माओं के प्रभाव को नियंत्रित करता है।

स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करें। स्फटिक असली हो तो प्रभाव में वृद्धि होगी।

घर के बाहर या अंदर आशीर्वाद मुद्रा में देवी-देवता की मूर्ति अथवा चित्र लगाएं। ध्यान रहेउनका मुंह भवन के बाहर की तरफ हो।

घर के ड्राइंगरूम में मोरबंदरशेरगायमृग आदि के चि‍त्र या मूर्ति रूप में किसी एक का जोड़ा रखें जिसका मुंह एक-दूसरे की तरफ हो तथा मुंह घर के अंदर होशुभ रहेगा।

दक्षिण दिशा में घोड़ा (अश्व) रखना सर्वोत्तम है।

असली स्फटिक बॉलश्रीयंत्रपिरामिड या कटिंग बॉल को आप कहीं भी रख सकते हैं। (श्रीयं‍त्र को केवल घर के मंदिर में रखें।)

सरल वास्तु टिप्स 2 : क्या करेंक्या न करें

धन की पेटी (कैश बॉक्स) में तीन सिक्के रखें

भवन निर्माण या वास्तु दोषों से मुक्ति हेतु कुछ वैज्ञानिक प्रयासों को अंजाम देकर परिवार में सुखशांति और व्यापारिक संस्थानों को श्रीसमृद्धि से युक्त बनाया जा सकता है। वास्तु टिप्स का लाभ उठा कर अपने बौद्धिक साहस का परिचय दीजिए। चमत्कारों का सूर्य आपको आभायुक्त बना देगा।

धन-समृद्धि के लिए धन की पेटी (कैश बॉक्स) में तीन सिक्के रखेंजो भाग्य की अभिवृद्धि में सहायक होंगे।

घोड़े की नाल पश्चिमी देशों तथा हमारे देश में भी बहुत भाग्यशाली और शुभ मानी जाती है। अपनी सुरक्षा और सौभाग्य के लिए इसे अपने घर के मुख्य द्वार के ऊपर चौखट के बीच में लगा सकते हैं।

बीम के नीचे बिंदु चिप्स लगाकर बीम के दोष को दूर कर सकते हैं।

संपत्ति तथा सफलता के लिए अपने बैठक कक्ष में पिरामिड को उत्तर-पूर्व में रखें।

प्रसिद्धि के लिए घर के दक्षिण क्षेत्र में लाल रंग का उपयोग करें एवं उसे लाल रंग की वस्तुओं से सजाएं। इससे परिवार में रहने वाले लोगों को खून से संबंधित बीमारियों से निजात मिल सकती हैकिंतु चि‍कि‍त्सीय भावना की उपेक्षा कष्टदायी हो सकती है।

मुख्य द्वार पर कोई अवरोध (खंबाकोनापेड़) आदि हो तो उसके दोष निवारण हेतु बागुआ मिरर लगाएं।

विवादों से संबंधित कागजात कभी भी आग्नेय दिशा में न रखें। ऐसे कागजात ईशान या वायव्य दिशा में रखें।

पश्चिम-दक्षिणउत्तर-पश्चिम तथा दक्षिण-पश्चिम दिशाओं को अन्य दिशाओं के मुकाबले ज्यादा से ज्यादा ढंका व भरा हुआ होना चाहिए तथा थोड़ा ऊंचा भी होना चाहिए।

सरल वास्तु टिप्स 3 : क्या करेंक्या न करें

खूंखार जानवर के चित्र न लगाएं

भवन निर्माण या वास्तु दोषों से मुक्ति हेतु कुछ वैज्ञानिक प्रयासों को अंजाम देकर परिवार में सुखशांति और व्यापारिक संस्थानों को श्रीसमृद्धि से युक्त बनाया जा सकता है। 
वास्तु टिप्स का लाभ उठा कर अपने बौद्धिक साहस का परिचय दीजिए। चमत्कारों का सूर्य आपको आभायुक्त बना देगा

घर में कांटेदार पौधेयुद्ध के दृश्यसूखे पेड़जमीनआंसू बहाते प्राणीखूंखार जानवर आदि के चित्र न लगाएं।

बच्चों के कमरों में सुंदर प्राकृतिक दृश्य यथा समृद्ध हरे-भरे पहाड़जल विहार तथा महापुरुषों के चित्र लगाएं। नाइट लैम्प के रूप में हरे या नीले बल्ब का प्रयोग सुखद रहेगा।

उत्तम भाग्य तथा पारिवारिक समृद्धि के लिए सुंदर रंगीन पर्देदीवार व छतों पर हल्के और मन लुभावने रंगों का प्रयोग करें।

कॉर्नरबीम आदि की नकारात्मकता को समाप्त करने के लिए पेड़-पौधोंसीनरी व लाइट्स का प्रयोग पारिवारिक सुख-सौहार्द के लिए अनुकूलता प्रदान करेगा।

टॉयलेट में सीट पूर्व-‍पश्चिम दिशा की ओर कदापि नहीं होना चाहिए।

व्यावसायिक कार्यालयों में दक्षिण दिशा में संस्थान के मालिक की फोटो लगाएं।

पवन घंटियां घर में सौभाग्य बढ़ाने का अद्भुत स्रोत हैं। पवन घंटियां बैठक तथा घर में स्थापित मंदिर के दरवाजे पर लटकाने से शुभ्रता प्रदान करती है।

मधुर संबंधों के लिए प्रसन्नचित मुद्रा में संयुक्त परिवार का फोटो लगाएं।

घर में नमक मिले पानी से पोंछा लगाएं। यह घर में स्‍थित नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में सहायक होगा।

जानिए कौन-सी दिशा किसके लिए है शुभ

वास्तु के सिद्धांत आयु एवं समृद्धि के लिए शुभ फलदायी

संपूर्ण धरती पर वास्तु के सिद्धांत काम करते हैं। इसकी वजह है कि प्रत्येक दिशा अथवा पदार्थ किसी न किसी ग्रह द्वारा प्रभावित होते हैं। 

इसी कारण किसी भी व्यवसाय या कार्य को यदि दिशाओं एवं ग्रहों के अनुकूल संबंध रहने पर ही लाभ होता है।

वास्तु के सिद्धांत आयु एवं समृद्धि के लिए शुभ फलदायी

पूर्व दिशा : ग्रहों में सूर्य पूर्व दिशा का स्वामी होता है। दवाऔषधि संबंधी व्यवसाय अथवा पेशे के लिए पूर्व की दिशा सबसे उपयुक्त है। यदि दवाई की दुकान है तो सामग्री उत्तर एवं पूर्व के रैक पर रखें। इसका कारण है कि उत्तर-पूर्व के निकट सूर्य की जीवनदायिनी किरणें सर्वप्रथम पड़ती हैंजो कि दवाइयों को ऊर्जापूर्ण बनाए रखती है जिसके सेवन से मनुष्य शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है।

आयुर्वेदिक एवं यूनानी दवा का संबंध सूर्य ग्रह से है अतः इसे पूर्व दिशा की रैक पर रखना लाभप्रद होता है।

 

उत्तर-पूर्व के भूखंड पर ऊनी वस्त्रअनाज की आढ़तआटा पीसने की चक्की तथा आटा मिलों का कार्य काफी लाभप्रद होता है। 

उत्तर-पूर्व दिशा : उत्तर-पूर्व दिशा का ग्रह स्वामी गुरु हैजो कि आध्यात्मिक एवं सात्विक विचारों के प्रणेता हैं। उत्तर-पूर्व दिशा अभिमुख भूखंड शिक्षकप्राध्यापकधर्मोपदेशकपुजारीधर्मप्रमुखप्राच्य एवं गुप्त विद्याओं के जानकारन्यायाधीशवकीलशासन से संबंधित कार्य करने वालेबैंकिंग व्यवस्था से संबंधित कार्यधार्मिक संस्थानज्योतिष से संबंधित कार्यों के लिए लाभप्रद होता है। 

छपाई के कार्य के लिए यह दिशा विशेष लाभकारी होती है। बिजली उपकरणों की दुकान/ कारखाना लगाना भी लाभप्रद होता है। 

ध्यान रहे कि किसी भी भवन में कृत्रिम जलाशय एवं फव्वारों को व्यवस्थित तरह से लगाना चाहिए। जल को धन-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। धनागमन के प्रतीक फव्वारों एवं जलाशयों को ठीक तरह से लगाना चाहिएक्योंकि यदि पानी का निकास गलत ढंग से हो तो धन-संपत्ति चली जाती है। 

किसी भी भवन की दक्षिण-पश्चिम दिशा में भारी पत्थर एवं मूर्तियां लगाने से पति-पत्नी के अलगावनिरंतर यात्राओं एवं अस्थायित्व का दोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है।

कहां रखें घर में कछुए की मूर्ति : जीवित कछुआ पालने या कछुए की मूर्ति या फोटो अपने घर की उत्तर दिशा में रखने या लगाने से जीवन में सुख-समृद्धि को बढ़ावा मिलता है 
कछुए का मुंह पूर्व की तरफ रखना चाहिए। यह आयु को बढ़ाता है। घर की उत्तर दिशा में किसी तालाब या पानी के टब में कछुए का होना पूरे घर वाले की समृद्धि एवं आयु के लिए शुभ फलदायी होता है।

वास्तु : ऐसे सजाएं घर कि खुशियां स्वागत करें

वास्तु से जानिए घर कैसे सजाएं

घर का वास्तु उत्तम हो तो आपको कोई भी चीज परेशान नहीं कर सकती। इन आसान से वास्तु टिप्स को आजमाकर आप अपनी जिंदगी को और भी ज्यादा बेहतर तरीके से जी सकते हैं। घर की सजावट ऐसे करें कि खुशियां भी आपका स्वागत मुस्कुरा कर करें।


1. 
घर के मुख्य द्वार की सजावट करें। ऐसा करने से आपके धन की वृद्धि होती है।

2. 
घर की खिड़कियों में सुंदर कांच लगाएंआपके संबंधों में मधुरता आएगी।

3. 
घर में दर्पण कुछ इस तरह से लटकाएं कि उसमें लॉकर या कैश बॉक्स का प्रतिबिम्ब बनेऐसा करने से आपकी धन-दौलत और शुभ अवसरों पर दो गुनी वृद्धि होती है।

4. 
अपने मास्टर बेडरूम को हल्के रंगों से पेंट करना चाहिएजैसे समुंदरी हराहल्का गुलाबी और हल्का नीला- ये वो रंग हैंजो बेडरूम के लिहाज से अच्छे रहते हैं।

5. 
घर में रखी बेकार की वस्तुओं को समय-समय पर फेंकते रहना चाहिएक्योंकि वास्तु के अनुसार घर में पड़ी वस्तुओं से प्रेम में बाधा पहुंचती है।

वास्तु टिप्स : कहीं आपके घर में तो नहीं है द्वार दोष

द्वार का किसी भी घर के लिए विशेष महत्व है। हम द्वार को खूब सजा कर भी रखते हैं लेकिन वास्तुशास्त्र कहता है कि इसमें दिशा का खास ध्यान रखा जाना चाहिए। यह हमारे हाथ में नहीं है कि हम द्वार का मनचाहा मुख रखें लेकिन हम यह अवश्य कर सकते हैं कि जिस दिशा में हमारे घर का द्वार है उसके अनुसार वास्तु उपाय आजमा लें।


पूर्व दिशा का द्वार

वास्तु के अनुसार पूर्व दिशा में घर का दरवाजा हो तो ऐसा व्यक्ति कर्ज में डूब जाता है।

उपाय : इसके लिए सोमवार को रुद्राक्ष घर के दरवाजे के मध्य लटका दें और पहले सोमवार को हवन कर रुद्राक्ष व शिव की आराधना करने से आपके समस्त कार्य सफल होंगे।

बेडरूम में सिर्फ राधा-कृष्ण की फोटो लगाएं

वास्तु के अनुसार पति-पत्नी का बेडरूम घर का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। यहां किसी भी भगवान का फोटो लगाना अशुभ माना जाता है। पति-पत्नी के बेडरूम में सिर्फ राधा और श्रीकृष्ण का प्रेम दर्शाता हुआ फोटो लगाया जा सकता है।

बेडरूम में देवी-देवताओं के फोटो या तस्वीर लगाना वास्तु में मना किया गया है। इससे कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। पति-पत्नी में सदैव प्रेम बना रहे इसके लिए बेडरूम की दीवार पर राधाकृष्ण का फोटो लगाया जा सकता है। राधा और कृष्ण प्रेम के प्रतीक माने जाते हैं।

इन्हें देखने से सभी के मन में नि:स्वार्थ प्रेम बढ़ता है और पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति ज्यादा समर्पित होते हैं। यदि पति-पत्नी के बीच लड़ाई-झगड़े अधिक होते हैं तो उन्हें अपने रूम में राधा और कृष्ण का फोटो लगा लेना चाहिए। इससे झगड़े की संभावनाओं में कमी आएगी और प्रेम बढ़ेगा।

 

ये सात चीजें रखें घर मेंहो जाएगा सब पॉजीटिव

ये सात चीजें इस प्रकार है- मछलियांदर्पणक्रिस्टलघंटीबांसुरीकछुआसिक्केलाफिंग बुद्धा आदि घर में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ाने का कार्य करते हैं। इन्हें वास्तु अनुसार सही स्थानों पर रखने से जहां परिवार के सभी सदस्यों के विचार सकारात्मक बनते हैं वहीं दूसरी ओर पैसों से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं। इन सात चीजों को घर में किस स्थान पर रखना चाहिए इस संबंध में जीवनमंत्र के वास्तु सेगमेंट लेख खोजे जा सकते हैं।

यदि भाग्य रेखा (मिडिल फिंगर से निकलने वाली रेखा) हृदय रेखा से निकलकर सीधे शनि पर्वत तक जाती है और आगे जाकर यह रेखा त्रिशूल बना देती है।

जिसका एक हिस्सा गुरु पर्वत (इंडैक्स फिंगर के नीचे वाला हिस्सा) पर और दूसरा सूर्य पर्वत (रिंग फिंगर के नीचे का क्षेत्र) तक जाता है तो यह अत्यंत शुभ मानी जाती है। यदि इसी प्रकार रेखा आगे जाकर दो भागों में बंट जाती है तो ऐसा व्यक्ति लाखों-करोड़ों रुपए कमाता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में मानपदप्रतिष्ठाधन व सम्मान प्राप्त करता है।

 



अचूक उपाय: अपनाएं वास्तु के ये 9 नियम,
वास्तु के इन नियमों को अपनाकर घर-परिवार में सुख, शांति और व्यापारिक संस्थानों को श्रीसमृद्धि से युक्त बनाया जा सकता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार यहां दिए नियकों को अपनाएं और जीवन में सुख ऐश्वर्य का अनुभव करें।

1- स्फटिक के शिवलिंग की पूजा करें। स्फटिक असली हो तो प्रभाव में वृद्धि होगी।

2- भवन निर्माण में दरवाजे और खिड़कियां सम संख्या में हों तथा सीढ़ियां विषम संख्या में हों।

3- टॉयलेट और किचन एक पंक्ति (कतार) में या आमने-सामने होना दोषकारक है।

4- घर में गणेशजी की एक से अधिक मूर्ति हो तो कोई बुराई नहीं है, लेकिन पूजा एक ही गणेशजी की करनी चाहिए।

  5- घर के बाहर या अंदर आशीर्वाद मुद्रा में देवी-देवता की मूर्ति अथवा चित्र लगाते हैं तो ध्यान रहे कि उनका मुंह भवन के बाहर की तरफ हो। सिर्फ गणेश का मुंह भवन के भीतर होना चाहिए क्योंकि गणेश के पीछे दरिद्रता रहती है।

6- घर के ड्राइंगरूम में मोर, बंदर, शेर, गाय, मृग आदि के चि‍त्र या मूर्ति रूप में किसी एक का जोड़ा रखें। इनका मुंह एक-दूसरे की तरफ हो तथा मुंह घर के अंदर हो, शुभ रहेगा।

7- बीम के नीचे बिंदु चिप्स लगाकर बीम के दोष को दूर कर सकते हैं।

8- श्रीयंत्र को केवल पूजा घर में ही रखना चाहिए।

9- संपत्ति तथा सफलता के लिए अपने बैठक कक्ष में पिरामिड को उत्तर-पूर्व में रखें।
 



Thursday 5 March 2015

FRUITS & Herbs

आंवला



आंवला खाया कि नहीं...
आंवले का सेवन सेहत के लिए बहुत जरूरी है। इसके नियमित सेवन से न केवल स्वास्थ्य सही रहता है, बल्कि सुंदरता भी बढ़ती है...

आंवला को यदि गुणों की खान कहा जाए तो गलत न होगा। सर्दी के मौसम में मिलने वाला आंवला बहुत सारे गुणों से भरपूर होता है। इसमें विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह पूरे शरीर के लिए फायदेमंद होता है। वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. सतीश चंद्र शुक्ला का कहना है कि अगर जाड़े के मौसम में प्रतिदिन आंवले का सेवन किया जाए तो शरीर पूरी तरह स्वस्थ रहेगा।

-आंवला बहुत सारे रोगों से राहत दिलाता है। इसमें कई सारे विटामिन्स और मिनरल्स जैसे विटामिन ए, बी-6, थियामिन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, कैरोटीन, कॉपर, पोटैशियम, मैंग्नीज आदि पाए जाते हैं। इसमें कई शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट्स पाए जाते हैं।

-आंवले को कई प्रकार से खाया जा सकता है। आप चाहें तो इसे कच्चे रूप में खा सकते हैं। इसका जूस भी निकाला जा सकता है। इसकी चटनी बनाने के साथ ही इसका हलुआ भी बनाया जा सकता है। आंवले के लच्छों को मीठा या नमकीन बनाकर खाया जा सकता है। इसका मुरब्बा तो हर मौसम में खाया जाता है। आंवला के रस को शहद या एलोवेरा में मिलाकर लिया जा सकता है।

-आयरन और एंटीऑक्सीडेंट्स की मौजूदगी के कारण आंवला बालों की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके सेवन से न केवल बालों की ग्रोथ अच्छी होती, बल्कि उनमें चमक भी आती है और बालों का गिरना भी कम हो जाता है। इसके रस को बालों की जड़ों में लगाने से भी लाभ मिलता है।

-विटामिन ए और कैरोटीन से भरपूर होने के कारण आंवला आंखों की सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके सेवन से न केवल आंखों की रोशनी सही रहती है, बल्कि वे कई सारी समस्याओं से भी बची रहती हैं।

-आंवले में मौजूद कैल्शियम दांतों, नाखूनों, त्वचा और हड्डियों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इससे त्वचा में निखार भी आता है। इसमें मिलने वाला प्रोटीन शरीर को पूरी तरह स्वस्थ रखता है।

-डाइबिटीज वाले लोग भी आंवले का सेवन कर सकते हैं। इसमें मिलने वाला क्रोमियम ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित रखता है। हां, यह ध्यान रखें कि बगैर शक्कर वाले आंवले का ही सेवन करें।

-आंवले में पानी भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इसलिए इसके सेवन करने पर पेशाब के साथ शरीर के हानिकारक तत्व जैसे अतिरिक्त पानी, नमक और यूरिक एसिड बाहर हो जाते हैं। यही कारण है कि यह किडनी को स्वस्थ रखने में भी सहायक है।

-इसमें फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। फाइबर हमारे पाचन तंत्र अर्थात पेट के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इसके सेवन से कब्ज की शिकायत दूर होती है। साथ ही डायरिया होने का भी खतरा नहीं रहता है।

-आंवले में मिलने वाले पोषक तत्व जैसे आयरन और एंटीऑक्सीडेंट्स हृदय को दुरुस्त रखने में बहुत सहायक हैं। आंवले के नियमित सेवन से हृदय में रक्तसंचार सही रूप से होता है। यह कोलेस्ट्राल के स्तर को भी सही रखता है।

-पोषक तत्वों से भरपूर होने के कारण आंवला एंटी एजिंग का भी काम करता है। साथ ही विभिन्न प्रकार के संक्रमण से बचाव करता है। यह हमारे इम्यून सिस्टम को सही रखता है। सर्दी-जुकाम से बचाव करने के साथ ही यह एनीमिया होने से भी बचाता है। एक्ने और पिंपल्स से भी बचाव करने में भी यह सहायक है।

कब और कितनी मात्रा में पीना चाहिए आंवला जूस 
सुबह खाली पेट आंवला जूस केवल 10 मिलीग्राम ही लें।बढ़ाकर 20 मिलीग्राम कर सकते हैं।इससे ज्यादा आंवला जूस का सेवन सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है।अलग-अलग समय पर इसे दो बार में भी ले सकते हैं। 

 

आंवला और इसका जूस पीने के फायदे- 
-आंखों के लिए आंवला अमृत समान है, यह आंखों की रोशनी को बढ़ाने में सहायक होता है। इसके लिए रोजाना एक चम्मच आंवला के पाउडर को शहद के साथ लेने से लाभ मिलता है और मोतियाबिंद की समस्या भी खत्म हो जाती है।
-बुखार से छुटकारा पाने के लिए आंवले के रस में छौंक लगाकर इसका सेवन करना चाहिए, इसके अलावा दांतों में दर्द और कैविटी होने पर आंवले के रस में थोड़ा सा कपूर मिला कर मसूड़ों पर लगाने से आराम मिलता है।
-शरीर में गर्मी बढ़ जाने पर आंवल सबसे बेहतर उपाय है। आंवले के रस का सेवन या आंवले को किसी भी रूप में खाने पर यह ठंडक प्रदान करता है। हिचकी तथा -उल्टी होने की पर आंवले के रस को मिश्री के साथ दिन में दो-तीन बार सेवन करने से काफी राहत मिलेगी।
 -चेहरे के दाग-धब्बे हटाकर उसे खूबसूरत बनाने के लिए भी आंवला आपके लिए उपयोगी होता है। इसका पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा साफ, चमकदार होती है और झुर्रियां भी कम हो जाती हैं।

इन चीजों के साथ सेवन करने के फायदे 
-आवंला कूटकर पेस्ट के रूप में तैयार कर लें।दो चम्मच आंवला का गूदा और दो चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम लें। जुकाम नहीं होगा, अगर है तो वह ठीक हो जाएगा।
-6-7 दिन तक खाली पेट एक चम्मच केवल आंवला जूस पिएं। इससे पेट के कीड़े मरेंगे।पेट साफ होगा।
-डायबिटीज़ की समस्या से जूझ रहे लोग भी आंवला जूस का सेवन कर सकते हैं।आंवला ब्लड शुगर को नियंत्रित रखने में कारगर है।
-पेशाब में जलन हो तो खाली पेट आंवला और शहद मिलाकर पिएं। राहत मिलेगी।
-खांसी के लिए भी आंवला काफी फायदेमंद है।आंवले का मुरब्बा दूध के साथ लें। खांसी में आराम मिलेगा।
-सफेद बालों को काला करने में आंवला कारगर है। नारियल के तेल में दो से तीन साबुत आंवला रात में भिगोकर रखें। सुबह में इस तेल की मालिश करें।बाल काले हो जाएंगे और मजबूत भी होंगे।


केला 



सेब ही नहीं, बल्कि दिन में दो केले भी आपको डॉक्टर से दूर रख सकते हैं। इससे पहले की हम आपको एक दिन में दो केले खाने के फायदे बताना शुरू करें, पहले यह जान लीजिए कि केला खाने से कोई मोटा नहीं होता। यह सिर्फ एक मिथ है। इससे आपको तुरंत एनर्जी मिलती है। इसमें फाइबर और तीन तरह की शुगर होती है- सुक्रोज़, फ्रुक्टोज़ और ग्लूकोज़।
एक रिसर्च के मुताबिक, 90 मिनट के वर्कआउट के लिए दो केले आपको खूब एनर्जी दे सकते हैं। इसलिए एथलीट्स केला ज़रूर खाते हैं। एनर्जी लेवल बढ़ाने के अलावा, केले से विटामिन्स भी मिलते हैं। दिन में दो केले खाने से आपके शरीर से जुड़ी 12 परेशानियां दूर हो सकती हैं।

1.डिप्रेशन:

एक रिसर्च की मानें तो डिप्रेशन के मरीज़ जब भी केला खाते हैं, उन्हें आराम मिलता है। दरअसल, केले में एक ऐसा प्रोटीन होता है, जो आपको रिलैक्स फील करवाता है और आपका मूड अच्छा करता है। केले में विटामिन B6 भी होता है, जिससे आपका ब्लड ग्लूकोज़ लेवल ठीक रहता है।

2.एनीमिया:

केले में आयरन होता है। इसलिए इसे खाने से ब्लड में हीमोग्लोबिन की कमी नहीं होती। जिन लोगों को एनीमिया है, उन्हें केला ज़रूर खाना चाहिए।
3.ब्लड प्रेशर
4.ब्रेन पावर
5.कॉन्सटीपेशन
6.हैंगओवर्ज़
7.हार्टबर्न
8.मॉर्निंग सिकनेस
9.मस्कीटो बाइट्स
10.नर्व्ज़
11.अल्सर
12.टेम्परेचर कंट्रोल

3.ब्लड प्रेशर:
इसमें पोटैशियम बहुत ज़्यादा होता है और नमक की मात्रा कम होती है, जिसके चलते आपका ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहता है। FDA, यानी US FOOD AND DRUG ADMINISTRATION ने भी हाल ही में BANANA INDUSTRY को यह बात आधिकारिक रूप से बताने को कहा है कि केला खाने से ब्लड प्रेशर और स्ट्रोक होने का रिस्क कम हो जाता है।

4.ब्रेन पावर:

इंग्लैंड के एक स्कूल में 200 स्टूडेंट्स को हर रोज़ इम्तिहान से पहले नाश्ते में केला ज़रूर खिलाया गया, ताकि उनका दिमाग तेज़ हो। दरअसल, रिसर्च कहता है कि पोटैशियम होने के चलते, केला खाने से याद करने की क्षमता बढ़ती है।

5.कॉन्सटीपेशन:

अगर आपको कब्ज़ रहती है, तो केला आपके काफी काम की चीज़ है। दिन में दो केले खाइए और फिर देखिए फाइबर होने के चलते केला खाने से कैसे आपकी यह परेशानी दूर होती है।

6.हैंगओवर्ज़ :

बहुत ज़्यादा अल्कोहल पीने के बाद, अगर आपका सिर दर्द हो, तो एक गिलास BANANA SHAKE पिएं। इसमें थोड़ी शहद भी डालिए। कुछ देर में आपका ब्लड शुगर लेवल ठीक हो जाएगा और हैंगओवर भी दूर हो जाएगा। सिर्फ यही नहीं, इससे आपकी बॉडी भी हाइड्रेटिड हो जाएगी।

7.हार्टबर्न:

अगर आपको एसिडिटी हो रही है और सीने में जलन भी, तो केला आपकी समस्या का समाधान है। 
8.मॉर्निंग सिकनेस:

अगर आपको खाने के बाद भी भूख लगती है, तो केला खाएं। इससे आपका ब्लड शुगर लेवल नॉर्मल रहेगा और आप रिलैकस्ड फील करेंगे।

9.मस्कीटो बाइट्स:
मच्छर के काटने पर आप लोशन या क्रीम की जगह, केले के अंदर का भाग भी लगा सकते हैं। इससे सूजन और जलन कम हो जाएगी।

10.नर्व्ज़:

केले में विटामिन B होता हैं, जो आपके नर्वस सिस्टम को सही रखता है। ऑस्ट्रेलिया के एक साइकोलॉजी इंस्टिट्यूट ने रिसर्च में पाया कि वर्कप्लेस में भूख लगने पर इम्पलॉई फास्ट फूड और स्नैक्स से अपना पेट भरते हैं। इस वजह से टेंशन और मोटापा बढ़ता है। इसलिए ज़रूरी है कि हर दो घंटे बाद आप कार्बोहाइड्रेट वाला फूड खाएं, जैसे केला।

11.अल्सर:

अगर आपको आए दिन छाले होते हैं, तो केला आपके लिए लाभदायक हो सकता है।

12.टेम्परेचर कंट्रोल:

केला खाने से प्रेग्नेंट वुमन का टेम्परेचर भी सही रहता है। अगर आप केले की तुलना सेब से करेंगे, तो पाएंगे कि केले में सेब से चार गुना ज्य़ादा प्रोटीन, दो गुना ज़्यादा कार्बोहाइड्रेट, तीन गुना ज़्यादा फॉस्फोरस, पांच गुना ज़्यादा विटामिन A और आयरन होता है। केले में पोटैशियम की मात्रा अधिक होती है, इसलिए दिन में दो केले ज़रूर खाएं और हेल्दी रहें।

किन्हें केला नहीं खाना चाहिए ?

दमा के मरीज़ों को केला नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इससे दमा बढ़ सकता है या उन्हें दमे का अटैक आ सकता है। सर्दियों में तो इसे खासकर न खाएं। सिर्फ यही नहीं, उन्हें दूध या दूध से बने प्रोडक्ट्स भी अवॉइड करने चाहिए। इसलिए वो बनाना शेक भी न लें, तो उनकी सेहत के लिए फायदेमंद होगा।
-अगर आपको खांसी है, तो भी आपको केला नहीं खाना चाहिए। इससे बलगम बनेगी और
खांसी बढ़ेगी।

बालों में चमक के लिए केला है बेस्ट !

बालों को झड़ने से बचाने के लिए हेयर मास्क बहुत कारगर है, लेकिन आप हमेशा पार्लर जाकर हेयर मास्क नहीं लगवा सकते। इसलिए हम आपको घर पर कैमिकल-फ्री हेयर मास्क बनाना सिखा रहे हैं। इससे आपके बाल हेल्दी होंगे और उनमें चमक भी आएगी।

BANANA CREAM MASK:

यह मास्क आपके बालों को हेल्दी और उन्हें शाइनिंग रखता है। यह आपके बालों की जड़ों को कमजोर होने से रोकता है और उन्हें मजबूती देता है। केले में मौजूद आयरन और विटामिन बालों को जरूरी पोषण देते हैं। इसे तैयार करने के लिए एक पके हुए केले को मिक्सी में पीस लें। फिर उसमें एक चम्मच शहद मिलाएं और बालों में लगाएं। 15-20 मिनट के बाद उन्हें गुनगुने पानी से धो लें। शहद नेचुरल कंडीशनर की तरह काम करता है। इस मास्क को फ्रिज में कई दिनों तक स्टोर करके रखा जा सकता है। 

चुकंदर


# 1 आपके रक्तचाप के स्तर को कम करता है चुकंदर नाइट्रेट्स का एक बड़ा स्रोत है, जिसका सेवन करने पर यह नाइट्राइट और नाइट्रिक ऑक्साइड नामक गैस में बदल जाता है। ये दोनों घटक धमनियों को चौड़ा करने और रक्तचाप को कम करने में मदद करते हैं। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि प्रतिदिन लगभग 500 ग्राम चुकंदर खाने से व्यक्ति का रक्तचाप लगभग छह घंटे में कम हो जाता है ।

# 2 'खराब' कोलेस्ट्रॉल को कम करता है और पट्टिका निर्माण को रोकता है ।

चुकंदर में बड़ी मात्रा में घुलनशील फाइबर, फ्लेवोनोइड्स और बेटासैनिन शामिल हैं। बेटिसैनिन वह यौगिक है जो चुकंदर को अपने प्यूरिश-लाल रंग देता है और एक शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट भी है। (1) यह एलडीएल कोलेस्ट्रॉल के ऑक्सीकरण को कम करने में मदद करता है और इसे धमनी की दीवारों पर जमा करने की अनुमति नहीं देता है। यह दिल को संभावित हार्ट अटैक और स्ट्रोक से बचाता है ताकि दवा की जरूरत कम हो।

# 3 गर्भवती महिलाओं और अजन्मे बच्चे के लिए अच्छा है ।

जड़ की एक और अद्भुत गुणवत्ता यह है कि इसमें फोलिक एसिड की प्रचुर मात्रा में आपूर्ति होती है। फोलिक एसिड गर्भवती माँ और अजन्मे बच्चों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अजन्मे बच्चे की रीढ़ की हड्डी के उचित गठन के लिए एक आवश्यक घटक है, और बच्चे को स्पाइना बिफिडा जैसी स्थितियों से बचा सकता है (यह एक जन्मजात विकार है जहाँ बच्चे की रीढ़ की हड्डी नहीं होती है) पूरी तरह से और ज्यादातर मामलों में ऐसा लगता है कि इसे आधार में दो में विभाजित किया गया है)। चुकंदर गर्भावस्था के दौरान अतिरिक्त ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए मॉम्स-टू-बी देता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को फोलिक एसिड की आवश्यकता क्यों होती है इसके बारे में और पढ़ें।

# 4 ऑस्टियोपोरोसिस को पीटता है ।

चुकंदर खनिज सिलिका के साथ पैक किया जाता है, शरीर के लिए कैल्शियम का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिए एक महत्वपूर्ण घटक है। चूँकि कैल्शियम हमारी हड्डियों और दाँतों को बनाता है, एक दिन चुकंदर के रस का एक गिलास पीने से ऑस्टियोपोरोसिस और अस्थि भंग जैसी बीमारियों को दूर रखने में मदद मिल सकती है। यहां बताया गया है कि आप ऑस्टियोपोरोसिस को कैसे रोक सकते हैं।

# 5 मधुमेह की जाँच करता है ।

मधुमेह से पीड़ित लोग अपने आहार में थोड़ा चुकंदर शामिल करके अपनी मीठी लालसा को पूरा कर सकते हैं। एक मध्यम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वेजीटेबल होने के नाते (इसका मतलब है कि यह शक्कर को बहुत धीरे-धीरे रक्त में छोड़ता है), यह आपकी शर्करा की तृष्णा को कम करते हुए आपके रक्त शर्करा के स्तर को बनाए रखने में सहायक होता है। (२) इसके अलावा, यह सब्जी कैलोरी में कम है और वसा रहित यह मधुमेह रोगियों के लिए एक आदर्श सब्जी है।

# 6 एनीमिया का इलाज करता है ।

यह एक आम मिथक है कि क्योंकि चुकंदर का रंग लाल होता है, यह खोए हुए रक्त को बदल देता है और इसलिए एनीमिया का इलाज करने के लिए अच्छा है। हालांकि यह कई लोगों के लिए अपमानजनक लग सकता है, मिथक में एक आंशिक सच्चाई छिपी है। चुकंदर में बहुत सारा आयरन होता है। आयरन हैमगलगुटिनिन के निर्माण में मदद करता है, जो रक्त का एक हिस्सा है जो शरीर के विभिन्न हिस्सों में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को पहुंचाने में मदद करता है। यह लोहे की सामग्री है न कि रंग जो एनीमिया के इलाज में मदद करता है। एनीमिया होने पर 5 खाद्य पदार्थों के बारे में पढ़ें, जिनसे आपको बचना चाहिए।

# 7 थकान दूर करने में मदद करता है ।

अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के सम्मेलन में प्रस्तुत एक अध्ययन में कहा गया है कि चुकंदर व्यक्ति की ऊर्जा को बढ़ावा देने में मदद करता है। उन्होंने कहा कि इसकी नाइट्रेट सामग्री के कारण यह धमनियों को पतला करने में मदद करता है जिससे शरीर के विभिन्न भागों में ऑक्सीजन के उचित परिवहन में मदद मिलती है, जिससे व्यक्ति की ऊर्जा बढ़ती है। एक अन्य सिद्धांत यह था कि क्योंकि जड़ लोहे का एक समृद्ध स्रोत है, यह किसी व्यक्ति की सहनशक्ति को बेहतर बनाने में मदद करता है। (3) जो भी स्रोत है, एक थका देने वाले दिन के अंत में एक पिक-अप हो सकता है, जो सिर्फ एक की जरूरत है।

# 8 यौन स्वास्थ्य और सहनशक्ति में सुधार करता है ।

Known प्राकृतिक वियाग्रा ’के रूप में भी जाना जाता है, चुकंदर का उपयोग आमतौर पर एक व्यक्ति के यौन स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए कई प्राचीन रीति-रिवाजों में किया गया है। चूँकि सब्जी नाइट्रेट का एक समृद्ध स्रोत है, यह शरीर में नाइट्रिक ऑक्साइड छोड़ने में मदद करता है, रक्त वाहिकाओं को चौड़ा करता है, और जननांगों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाता है - एक तंत्र जो वियाग्रा जैसी दवाओं को दोहराने की तलाश करता है। एक अन्य कारक यह है कि चुकंदर में बहुत सारे बोरॉन होते हैं, एक रासायनिक यौगिक जो मानव सेक्स हार्मोन के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है। तो अगली बार, नीली गोली खाई और इसके बजाय कुछ चुकंदर का रस लें। यहाँ 8 यौन सहनशक्ति बढ़ाने के टिप्स दिए गए हैं जो आपको याद नहीं होने चाहिए!

# 9 आपको कैंसर से बचाता है ।

चुकंदर में बेटासैनिन सामग्री का एक और बहुत महत्वपूर्ण कार्य है। वॉशिंगटन डीसी के हावर्ड विश्वविद्यालय में किए गए एक अध्ययन में, यह पाया गया कि बिटकॉइनिन ने स्तन और प्रोस्टेट कैंसर के रोगियों में 12.5 प्रतिशत तक ट्यूमर के विकास को धीमा करने में मदद की। (४) यह प्रभाव न केवल कैंसर के निदान और उपचार में मदद करता है, बल्कि यह कैंसर से बचे लोगों को कैंसर मुक्त रहने में भी मदद करता है।

# 10 कब्ज को दूर करता है ।

इसकी उच्च घुलनशील फाइबर सामग्री के कारण, चुकंदर एक महान रेचक के रूप में कार्य करता है। यह मल को नरम करके आपके मल त्याग को नियमित करने में मदद करता है। यह बृहदान्त्र को भी साफ करता है और पेट से हानिकारक विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है। कब्ज से राहत पाने के लिए यहां कुछ घरेलू उपचार दिए गए हैं।

# 11 मस्तिष्क की शक्ति बढ़ाता है ।

ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि चुकंदर का रस पीने से एक व्यक्ति की सहनशक्ति 16 प्रतिशत बढ़ सकती है, क्योंकि यह नाइट्रेट सामग्री की वजह से है। शरीर द्वारा ऑक्सीजन को बढ़ाने के लिए जाना जाता है, अध्ययन में यह भी पाया गया कि इस एक कारक के कारण, यह मस्तिष्क के उचित कामकाज में भी मदद कर सकता है और मनोभ्रंश की शुरुआत को हरा सकता है। (५) यह भी देखा गया है कि नाइट्राइट में परिवर्तित होने पर नाइट्रेट तंत्रिका आवेगों के बेहतर संचरण में मदद करता है, जिससे मस्तिष्क बेहतर कार्य करता है।



Friday 8 August 2014

Kundli Gyan




जन्म‍ पत्रिका देखना कोई मामूली बात नहीं। जरा सी भूल सामने वाले को मानसिक परेशानी में डाल सकती है या गलत तालमेल जीवन को नष्ट कर देता है। पत्रिका मिलान में की गई गड़बड़ी या कुछ लोगों को अनदेखा कर देना जीवन को नष्ट कर देता है।

सबसे पहले हम जानेंगे पत्रिका में किस भाव से क्या देखें फिर मिलान पर नजर डालेंगे। जन्म पत्रिका में बारह भाग होते हैं व जिस जातक का जन्म जिस समय हुआ है उस समय के लग्न व लग्न में बैठे ग्रह लग्नेश की स्थिति आदि। 

लग्न प्रथम भाव से स्वयं शरीर, व्यक्तित्व, रंग-रूप, स्वभाव, चंचलता, यश, 

द्वितीय भाव से धन, कुटुंब, वाणी़, नेत्र, मारक, विद्या, पारिवारिक स्थिति, राजदंड, स्त्री की कुंडली में पति की आयु देखी जाती है।

तृतीय भाव से कनिष्ठ भाई-बहन, पराक्रम, छोटी-छोटी यात्रा, लेखन, अनुसंधान स्त्री की कुंडली में पति का भाग्य, यश, श्वसुर, देवरानी, नंदोई।

चतुर्थ भाव से माता, मातृभूमि संपत्ति, भवन, जमीन, जनता से संबंध, कुर्सी, श्वसुर का धन, पिता का व्यवसाय, अधिकार, सम्मान आदि। 

पंचम भाव से विद्या, संतान, मनोरंजन, प्रेम, मातृ धन, पति की आय, सास की मृत्यु, लाभ, जेठ, बड़सास, चाचा, श्वसुर, बुआ सास,

षष्ट भाव से श्रम, शत्रु, रोग, कर्ण, मामा, मौसी, पुत्रधन, प्रवास, श्वसुर की अचल संपत्ति, पति का शैया सुख। 
सप्तम भाव से पति, पत्नी, विवाह, दाम्पत्य जीवन, वैधव्य, चरित्र, नानी, पति का रंग-रूप, ससुराल, यश-सम्मान। 

अष्टम भाव से आयु, गुप्त धन, गुप्त रोग, सौभाग्य, यश-अपयश, पति का धन व परिवार।

नवम भाव से भाग्य धर्म, यश, पुण्य, संतान, संन्यास, पौत्र, देवर-ननद। 

दशम भाव से राज्य, प्रशासनिक सेवा, पिता प्रतिष्ठा, सास, पति की मातृभूमि, आवास, अचल संपत्ति वाहनादि। 

एकादश भाव से आय, अभीष्ट प्राप्ति, चाचा, पुत्रवधू, दामाद, जेठानी, चाची, सास, सास का धन। 

द्वादश भाव से व्यय, गुप्त शत्रु, हानि, शयन सुख, कारोबार, पति की हानि, ऋण, मामा, मामी।

उक्त बातें स्त्री की कुंडली में देखी जाती हैं। किस भाव का स्वामी किस भाव में‍ किस स्थिति में है। इसे भी विचारणीय होना चाहिए। वर्तमान में गोचर ग्रहों की स्थिति व उनसे संबंध का भी ध्यान रखना चाहिए। मारक स्थान व उस समय की दशा-अंतरदशा का ध्यान रखना भी परम आवश्यक होता है।

जन्मपत्रिका मिलान करते समय मंगल दोष की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। जब सप्तमेश में शनि मंगल का संबंध बनता हो तो उस दोष के उपाय अवश्य करवाना चाहिए नहीं तो कन्या के कम उम्र में विधवा होने या पुरुष के विधुर होने की आशंका बनी रहती है।

इस प्रकार जन्म‍पत्रिका ठीक ढंग से मिलाने पर इन अनहोनियों से बचा जा सकता है और जातक का भला हो सकता है।




जन्म कुंडली के 12 भावों के अलग-अलग नाम हैं

लग्नभाव प्रथम भाव है, उसे तन भाव कहते हैं।

दूसरे भाव को धन भाव,

तृतीय भाव को सहज भाव,

चतुर्थ भाव को सुख एवं मातृभाव,

पंचम भाव को सुत भाव,

षष्ठ भाव को रिपु भाव,

सप्तम भाव को भार्या भाव,

अष्टम भाव को आयु भाव,

नवम भाव को भाग्यभाव तथा धर्म भाव,

दशम भाव को कर्म एवं पिता भाव,

एकादश भाव को आय भाव और

द्वादश भाव को व्यय भाव कहते हैं।

ये जन्मकुंडली के 12 भावों के नाम हैं।


 

  •  * प्रथम भाव से जातक की शारीरिक स्‍थिति, स्वास्थ्य, रूप, वर्ण,‍ चिह्न, जाति, स्वभाव, गुण, आकृति, सुख, दु:ख, सिर, पितामह तथा शील आदि का विचार करना चाहिए।

  • * द्वितीय भाव से धनसंग्रह, पारिवारिक स्‍थिति, उच्च विद्या, खाद्य-पदार्थ, वस्त्र, मुखस्थान, दा‍हिनी आंख, वाणी, अर्जित धन तथा स्वर्णादि धातुओं का संचार होता है।

  • * तृतीय भाव से पराक्रम, छोटे भाई-बहनों का सुख, नौकर-चाकर, साहस, शौर्य, धैर्य, चाचा, मामा तथा दाहिने कान का विचार करना चाहिए।

  • * चतुर्थ भाव से माता, स्थायी संपत्ति, भूमि, भवन, वाहन, पशु आदि का सुख, मित्रों की स्थिति, श्वसुर तथा हृदय स्थान का विचार करना चाहिए।

  • * पंचम भाव से विद्या, बुद्धि, नीति, गर्भ स्थिति, संतान, गुप्त मंत्रणा, मंत्र सिद्धि, विचार-शक्ति, लेखन, प्रबंधात्मक योग्यता, पूर्व जन्म का ज्ञान, आध्यात्मिक ज्ञान, प्रेम-संबंध, इच्‍छाशक्ति आदि का विचार करना चाहिए।

  • * षष्ठ भाव से शत्रु, रोग, ऋण, चोरी अथवा दुर्घटना, काम, क्रोध, मद, मोह, लोभादि विकार, अपयश, मामा की स्थिति, मौसी, पापकर्म, गुदा स्‍थान तथा कमर संबंधी रोगों का विचार करना चाहिए।

  • * सप्तम भाव से स्त्री एवं विवाह सुख,‍ स्‍त्रियों की कुंडली में पति का विचार, वैवाहिक सुख, साझेदारी के कार्य, व्यापार में हानि, लाभ, वाद-विवाद, मुकदमा, कलह, प्रवास, छोटे भाई-बहनों की संतानें, यात्रा तथा जननेन्द्रिय संबंधी गुप्त रोगों का विचार करना चाहिए।

  • * अष्टम भाव से मृत्यु तथा मृत्यु के कारण, आयु, गुप्त धन की प्राप्ति, विघ्न, नदी अथवा समुद्र की यात्राएं, पूर्व जन्मों की स्मृति, मृत्यु के बाद की स्थिति, ससुराल से धनादि प्राप्त होने की स्‍थिति, दुर्घटना, पिता के बड़े भाई तथा गुदा अथवा अण्डकोश संबंधी गुप्त रोगों का विचार करना चाहिए।

  • * नवम भाव से धर्म, दान, पुण्य, भाग्य, तीर्थयात्रा, विदेश यात्रा, उत्तम विद्या, पौत्र, छोटा बहनोई, मानसिक वृत्ति, मरणोत्तर जीवन का ज्ञान, मंदिर, गुरु तथा यश आदि का विचार करना चाहिए।

  • * दशम भाव से पिता, कर्म, अधिकार की प्राप्ति, राज्य प्रतिष्ठा, पदोन्नति, नौकरी, व्यापार, विदेश यात्रा, जीविका का साधन, कार्यसिद्धि, नेता, सास, आकाशीय स्‍थिति एवं घुटनों का विचार करना चाहिए।

  • * एकादश भाव से आय, बड़ा भाई, मित्र, दामाद, पुत्रवधू, ऐश्वर्य-संपत्ति, वाहनादि के सुख, पारिवारिक सुख, गुप्त धन, दाहिना कान, मांगलिक कार्य, भौतिक पदार्थ का विचार करना चाहिए।
  • * द्वादश भाव से धनहानि, खर्च, दंड, व्यसन, शत्रु पक्ष से हानि, बायां नेत्र, अपव्यय, गुप्त संबंध, शय्या सुख, दु:ख, पीड़ा, बंधन, कारागार, मरणोपरांत जीव की गति, मुक्ति, षड्यंत्र, धोखा, राजकीय संकट तथा पैर के तलुए का विचार करना चाहिए।
कुंडली और अनायास धन‍ प्राप्ति योग
 
* लग्नेश द्वितीय भाव में तथा द्वितीयेश लाभ भाव में हो।

* चंद्रमा से तीसरे, छठे, दसवें, ग्यारहवें स्थानों में शुभ ग्रह हों।

* पंचम भाव में चंद्र एवं मंगल दोनों हों तथा पंचम भाव पर शुक्र की दृष्टि हो।

* चंद्र व मंगल एकसाथ हों, धनेश व लाभेश एकसाथ चतुर्थ भाव में हों तथा चतुर्थेश शुभ स्थान में शुभ दृष्ट हो।

* द्वितीय भाव में मंगल तथा गुरु की युति हो।
* धनेश अष्टम भाव में तथा अष्टमेश धन भाव में हो।

* पंचम भाव में बुध हो तथा लाभ भाव में चंद्र-मंगल की युति हो।

* गुरु नवमेश होकर अष्टम भाव में हो।

* वृश्चिक लग्न कुंडली में नवम भाव में चंद्र व बृहस्पति की युति हो।

* मीन लग्न कुंडली में पंचम भाव में गुरु-चंद्र की युति हो।

* कुंभ लग्न कुंडली में गुरु व राहु की युति लाभ भाव में हो।

* चंद्र, मंगल, शुक्र तीनों मिथुन राशि में दूसरे भाव में हों।

* कन्या लग्न कुंडली में दूसरे भाव में शुक्र व केतु हो।

* तुला लग्न कुंडली में लग्न में सूर्य-चंद्र तथा नवम में राहु हो।

* मीन लग्न कुंडली में ग्यारहवें भाव में मंगल हो।

जानिए आपके भाग्य में कितना पैसा है?
 
धन योग 

 
* जब कुंडली के दूसरे भाव में शुभ ग्रह बैठा हो तो जातक के पास अपार पैसा रहता है।

* जन्म कुंडली के दूसरे भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तब भी भरपूर धन के योग बनते हैं।

* चूंकि दूसरे भाव का स्वामी यानी द्वितीयेश को धनेश माना जाता है अत: उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो तब भी व्यक्ति को धन की कमी नहीं रहती।

* दूसरे भाव का स्वामी यानी द्वितीयेश के साथ कोई शुभ ग्रह बैठा हो तब भी व्यक्ति के पास खूब पैसा रहता है।

* जब बृहस्पति यानी गुरु कुंडली के केंद्र में स्थित हो।

* बुध पर गुरु की पूर्ण दृष्टि हो। (5,7,9)

* बृहस्पति लाभ भाव (ग्यारहवें भाव) में स्‍थित हो।

* द्वितीयेश उच्च राशि का होकर केंद्र में बैठा हो।

* लग्नेश लग्न स्थान का स्वामी जहां बैठा हो, उससे दूसरे भाव का स्वामी उच्च राशि का होकर केंद्र में बैठा हो।

* धनेश व लाभेश उच्च राशिगत हों।

* चंद्रमा व बृहस्पति की किसी शुभ भाव में यु‍ति हो।

* बृहस्पति धनेश होकर मंगल के साथ हो।

* चंद्र व मंगल दोनों एकसाथ केंद्र में हों।

* चंद्र व मंगल दोनों एकसाथ त्रिकोण में हों।

* चंद्र व मंगल दोनों एकसाथ लाभ भाव में हों।

* लग्न से तीसरे, छठे, दसवें व ग्यारहवें भाव में शुभ ग्रह बैठे हों।

* सप्तमेश दशम भाव में अपनी उच्च राशि में हो।

* सप्तमेश दशम भाव में हो तथा दशमेश अपनी उच्च राशि में नवमेश के साथ हो।

जन्म-कुंडली में देखिए कितना पैसा है आपके पास? 

 
* मेष लग्न की कुंडली में लग्न में सूर्य, मंगल, गुरु व शुक्र यह चारों यदि नवम भाव में हों तथा शनि सप्तम भाव में हो तो धन योग बनते हैं।
* मेष लग्न की कुंडली में लग्न में सूर्य व चतुर्थ भाव में चंद्र स्थित हो।

* वृष लग्न की कुंडली में बुध-गुरु एकसाथ बैठे हों तथा मंगल की उन पर दृष्टि हो।

* मिथुन लग्न की कुंडली में चंद्र-मंगल-शुक्र तीनों एकसाथ द्वितीय भाव में हों।
* मिथुन लग्न की कुंडली में शनि नवम भाव में तथा चंद्र व मंगल ग्यारहवें भाव में हों।

* कर्क लग्न की कुंडली में चंद्र-मंगल-गुरु दूसरे भाव में तथा शुक्र-सूर्य पंचम भाव में हों।
* कर्क लग्न की कुंडली में लग्न में चंद्र तथा सप्तम भाव में मंगल हों।
* कर्क लग्न की कुंडली में लग्न में चंद्र तथा चतुर्थ में शनि हो।
सिंह लग्न की कुंडली में सूर्य, मंगल तथा बुध- ये तीनों कहीं भी एकसाथ बैठे हों।
* सिंह लग्न की कुंडली में सूर्य, बुध तथा गुरु- ये तीनों कहीं भी एकसाथ बैठे हों।

* कन्या लग्न कुंडली में शुक्र व केतु दोनों धनभाव में हों।

* तुला लग्न कुंडली में चतुर्थ भाव में शनि हो।
* तुला लग्न कुंडली में गुरु अष्टम भाव में हो।

* वृश्चिक लग्न कुंडली में बुध व गुरु कहीं भी एकसाथ बैठे हों।
* वृश्चिक लग्न कुंडली में बुध व गुरु की परस्पर सप्तम दृष्टि हो।

* धनु लग्न वाली कुंडली में दशम भाव में शुक्र हो।

* मकर लग्न कुंडली में मंगल तथा सप्तम भाव में चंद्र हो।

* कुंभ लग्न कुंडली में गुरु किसी भी शुभ भाव में बलवान होकर बैठा हो।
* कुंभ लग्न कुंडली में दशम भाव में शनि हो।

* मीन लग्न कुंडली में लाभ भाव में मंगल हो।
* मीन लग्न कुंडली में छठे भाव में गुरु, आठवें में शुक्र, नवम में शनि तथा ग्यारहवें भाव में चंद्र-मंगल हों।

जानिए जन्मकुंडली से कैसे चमकाएं अपना भाग्य 

 
जन्मकुंडली में बीच के स्थान यानी लग्न से लेकर नौवां स्थान भाग्य का माना जाता है। यह स्थान तय करता है कि व्यक्ति का भाग्य कैसा होगा, कब चमकेगा और कब उसे प्रगति के मार्ग पर ले जाएगा। आइए जानते हैं पत्रिका के भाग्य भाव की रोचक जानकारी-
अगर पत्रिका में नवम भाव का स्वामी नवम भाव में ही हो तो ऐसा जातक भाग्य लेकर ही पैदा होता है। उसे जीवन में तकलीफ नहीं आती। यदि इस भाव के स्वामी रत्न का धारण विधिपूर्वक कर लें तो तेजी से भाग्य बढ़ने लगता है।
नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो भाग्य भाव से द्वादश होने के कारण व अष्टम अशुभ भाव में होने के कारण ऐसे जातकों को अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अत: ऐसे जातक नवम भाव की वस्तु को अपने घर की ताक पर एक वस्त्र में रखें तो भाग्य बढ़ेगा।
 नवम भाग्यवान का स्वामी षष्ट भाव में हो तो उसे अपने शत्रुओं से भी लाभ होता है। नवम षष्ट में उच्च का हो तो वो स्वयं कभी कर्जदार नहीं रहेगा न ही उसके शत्रु होंगे। ऐसी स्थिति में उसे उक्त ग्रह का नग धारण नहीं करना चाहिए।
* नवम भाव का स्वामी यदि चतुर्थ भाव में स्वराशि या उच्च का या मित्र राशि का हो तो वह उस ग्रह का रत्न धारण करें तो भाग्य में अधिक उन्नति होगी। ऐसे जातकों को जनता संबंधित कार्यों में, राजनीति में, भूमि-भवन-मकान के मामलों में सफलता मिलती है। ऐसे जातक को अपनी माता का अनादर नहीं करना चाहिए।
 नवम भाव का स्वामी यदि नीच राशि का हो तो उससे संबंधित वस्तुओं का दान करना चाहिए। ज‍बकि स्वराशि या उच्च का हो या नवम भाव में हो तो उस ग्रह से संब‍ंधित वस्तुओं के दान से बचना चाहिए।
नवम भाव में गुरु हो तो ऐसे जातक धर्म-कर्म को जानने वाला होगा। ऐसे जातक पुखराज धारण करें तो यश-प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
नवम भाव में स्वराशि का सूर्य या मंगल हो तो ऐसे जातक उच्च पद पर पहुंचते हैं। सूर्य व मंगल जो भी हों उससे संबंधित रंगों का प्रयोग करें तो भाग्य में वृद्धि होगी।
नवम भाव का स्वामी दशमांश में स्वराशि या उच्च का हो व लग्न में शत्रु या नीच राशि का हो तो उसे उस ग्रह का रत्न पहनना चाहिए तभी राज्य, व्यापार, नौकरी जिसमें हाथ डाले वह जातक सफल होगा।
 नवम भाव की महादशा या अंतरदशा चल रही हो तो उस जातक को उक्त ग्रह से संबंधित रत्न अवश्य पहनना चाहिए। इस प्रकार हम अपने भाग्य में वृद्धि कर सफलता पा सकते हैं।
 

Friday 14 June 2013

BLOOD PRESSURE

रक्तचाप समस्या और समाधान 


Average Blood Pressure

Young

80/120 mmHg

Old

90/140 mmHg

 

Level of severity

Systolic Blood Pressure(in mmHg)

Diastolic Blood Pressure(in mmHg)

Mild

140-160

90-100

Moderate

160-200

100-120

Severe

Above 200

Above 120

उच्च रक्तचाप की दवाई::


उच्च रक्तचाप की बीमारी ठीक करने के लिए घर में उपलब्ध कुछ आयुर्वेदिक दवाईया है जो आप ले सकते है । 

1. जैसे एक बहुत अच्छी दवा आप के घर में है वो है दालचीनी जो मसाले के रूप में उपयोग होता है वो आप पत्थर में पिस कर पावडर बनाके आधा चम्मच रोज सुबह खाली पेट गरम पानी के साथ खाइए 


1(a).  अगर थोडा खर्च कर सकते है तो दालचीनी को शहद के साथ लीजिये (आधा चम्मच शहद आधा चम्मच दालचीनी) गरम पानी के साथ, ये हाई BP के लिए बहुत अच्छी दवा है । यह भी  अच्छी दवा है जो आप ले सकते है पर दोनों में से कोई एक । 

2.दूसरी दवा है मेथी दाना, मेथी दाना आधा चम्मच लीजिये एक ग्लास गरम पानी में और रात को भिगो दीजिये, रात भर पड़ा रहने दीजिये पानी में और सुबह उठ कर पानी को पी लीजिये और मेथी दाने को चबा के खा लीजिये । ये बहुत जल्दी आपकी हाई BP कम कर देगा, डेढ़  से दो महीने में एकदम स्वाभाविक कर देगा ।

 3. तीसरी दवा है हाई BP के लिए वो है अर्जुन की छाल । अर्जुन एक वृक्ष होती है उसकी छाल को धुप में सुखा कर पत्थर में पिस के इसका पावडर बना लीजिये । आधा चम्मच पावडर, आधा ग्लास गरम पानी में मिलाकर उबाल ले, और खूब उबालने के बाद इसको चाय की तरह पी ले । ये हाई BP को ठीक करेगा, कोलेस्ट्रोल को ठीक करेगा, ट्राईग्लिसाराईड को ठीक करेगा, मोटापा कम करता है , हार्ट में अर्टेरिस में अगर कोई ब्लोकेज है तो वो ब्लोकेज को भी निकाल देता है ये अर्जुन की छाल । डॉक्टर अक्सर ये कहते है न ,कि दिल कमजोर है आपका । अगर दिल कमजोर है तो आप जरुर अर्जुन की छाल लीजिये हरदिन , दिल बहुत मजबूत हो जायेगा आपका । आपका ESR ठीक होगा, ejection fraction भी ठीक हो जायेगा ,  बहुत अच्छी दवा है ये अर्जुन की छाल ।

 4. एक और अच्छी दवा है हमारे घर में वो है लौकी का रस । एक कप लौकी का रस रोज पीना सबेरे खाली पेट नास्ता करने से एक घंटे पहले ; और इस लौकी की रस में पांच धनिया पत्ता, पांच पुदीना पत्ता, पांच तुलसी पत्ता मिलाके, तिन चार कलि मिर्च पिस के ये सब डाल के पीना .. ये बहुत अच्छा आपके BP ठीक करेगा और ये ह्रदय को भी बहुत व्यवस्थित कर देता है , कोलेस्ट्रोल को ठीक रखेगा, डाईबेटिस में भी काम आता है ।



5.बिलकुल  मुफ्त की एक दवा है , बेल पत्र की पत्ते - ये उच्च रक्तचाप में बहुत काम आते है । पांच बेल पत्र ले कर पत्थर में पिस कर उसकी चटनी बनाइये अब इस चटनी को एक ग्लास पानी में डाल कर खूब गरम कर लीजिये , इतना गरम करिए के पानी आधा हो जाये , फिर उसको ठंडा करके पी लीजिये । ये सबसे जल्दी उच्च रक्तचाप को ठीक करता है और ये बेलपत्र आपके शुगर  को भी सामान्य कर देगा । जिनको उच्च रक्तचाप और शुगर  दोनों है उनके लिए बेल पत्र सबसे अच्छी दवा है ।




 नोट:-  एक और प्राचीनतम  दवा है हाई BP के लिए - देशी गाय की मूत्र आधा कप रोज सुबह खाली पेट पीये , ये बहुत जल्दी हाई BP को ठीक कर देता है । और ये गोमूत्र बहुत अद्भूत है , ये हाई BP को भी ठीक करता है और लो BP को भी ठीक कर देता है - दोनों में काम आता है और येही गोमूत्र डाईबेटिस को भी ठीक कर देता है , Arthritis , Gout (गठिया) दोनों ठीक होते है । अगर आप गोमूत्र लगातार पि रहे है तो दमा भी ठीक होता है अस्थमा भी ठीक होता है, Tuberculosis भी ठीक हो जाती है । इसमें दो सावधानिया ध्यान रखने की है के गाय सुद्धरूप से देशी हो और वो गर्भावस्था में न हो ।

निम्न रक्तचाप की बीमारी के लिए दवा ::


1.निम्न रक्तचाप की बीमारी के लिए सबसे अच्छी दवा है गुड़ ।

 ये गुड़ पानी में मिलाके, नमक डालके, नीबू का रस मिलाके पि लो । एक ग्लास पानी में 25 ग्राम गुड़, थोडा नमक नीबू का रस मिलाके दिन में दो तिन बार पिने से लो BP सबसे जल्दी ठीक होगा ।

2.एक और अच्छी दवा है ..अगर आपके पास थोड़े पैसे हैं तो रोज अनार का रस पियो नमक डालकर इससे बहुत जल्दी लो BP ठीक हो जाती है 

3. गन्ने का रस पीये नमक डालकर ये भी लो BP ठीक कर देता है 

4.संतरे का रस नमक डाल के पियो ये भी लो BP ठीक कर देता है

5. अनन्नास का रस पीये नमक डाल कर ये भी लो BP ठीक कर देता है ।

6. लो BP के लिए और एक बढ़िया दवा है मिसरी और मक्खन  मिलाके खाओ - ये लो BP की सबसे अच्छी दवा है ।

7. लो BP के लिए और एक बढ़िया दवा है दूध में घी मिला के पियो , एक ग्लास देशी गाय का दूध और एक चम्मच देशी गाय की घी मिला के रात को पीने  से लो BP बहुत अच्छे से ठीक होगा ।

8. एक और अच्छी दवा है लो BP की और सबसे सस्ता भी वो है नमक का पानी पियो दिन में दो तिन बार , जो गरीब लोग है ये उनके लिए सबसे अच्छा है ।


9. १०-१५ किशमिश को रात में भिगोने रख दीजिये और सुबह खाली पेट इसका सेवन कीजिये , ऐसा कम से कम  एक महीना लगातार सेवन करने से लो बी पी की शिकायत अवश्य दूर होगी। और अगर हो सके तो इसका  पानी भी पी लेना चाहिए , पानी में भरपूर एंटीऑक्सीडेंट होते हैं जो कई तरह से हमे लाभ पहुंचाते हैं।  




नोट:-कम से कम दो केला(रोज़) के नियमित सेवन करने से लो तथा हाय दोनों तरह की बी पी को कण्ट्रोल किया जा सकता है। 

Tuesday 22 December 2009

अब और क्या

अभी इस संसार में जो भी उथल पुथल चल रहा है इसके जिम्मेदार कौन हैं ?शायद हम लोग ही हैं पर अभी तक किसी ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया है की आने वाला कल कैसा होगा ?इसका प्रारूप कैसा होगा?आज हम एक नहीं कई समस्याओं से जूझ रहे हैं उदहारण स्वरुप आबादी,मौसम का बदलाव,पर्यावरण में उठा -पटक ,लोगो का आचरण ,बीमारी,स्वार्थ ,ऐसी बहुत सारी चीज़े हैं जिससे हमारी शांति,समृधि,सुख ,विचार ,रहा-सहन में बदलाव आ गया है!सबसे ज्यादा प्रक्रिरती का उपभोग हम मानव ही कर रहे हैं इस लिए इसमें थोड़ी सी भी कमी होने पर मानव जातिका अस्तित्व खतरे में पद जायेगा इसलिए सभी अपने विचार प्रगट करें और हर संभव हल ढूँढने की कोशिश करें !आपके विचार विचारनीय होंगे और इसको अपने लाइफ में भी लागू करने की जरूरत हैं!धन्यवाद्.

Tuesday 10 February 2009

Love




मेरे पास एक बार एक दोस्त था जो मेरे बहुत करीब हो गया। एक बार जब हम एक स्विमिंग पूल के किनारे पर बैठे थे, तो उसने अपने हाथ की हथेली को कुछ पानी से भरा और मेरे सामने रखा, और यह कहा: "आप इस पानी को ध्यान से मेरे हाथ पर देखते हैं? यह प्यार का प्रतीक है।" यह मैंने इसे कैसे देखा: जब तक आप अपने हाथ को खुले तौर पर रखते हैं और इसे वहां रहने की अनुमति देते हैं, यह हमेशा रहेगा। हालांकि, अगर आप अपनी उंगलियों को बंद करने का प्रयास करते हैं और इसे रखने की कोशिश करते हैं, तो यह पहले मिलने वाली दरार के माध्यम से फैल जाएगा। यह सबसे बड़ी गलती है जो लोग प्यार से मिलने पर करते हैं ... वे इसे हासिल करने की कोशिश करते हैं, वे मांग करते हैं, वे उम्मीद करते हैं ... और जैसे पानी आपके हाथ से निकलता है, वैसे ही प्यार आपसे प्राप्त होगा। प्रेम का अर्थ है मुक्त होना, आप इसका स्वरूप नहीं बदल सकते। यदि ऐसे लोग हैं जिन्हें आप प्यार करते हैं, तो उन्हें स्वतंत्र प्राणी होने दें। उम्मीद करें और उम्मीद न करें। सलाह दें, लेकिन आदेश न दें। लेकिन, कभी भी मांग न करें। यह सरल लग सकता है, लेकिन यह एक ऐसा सबक है जो वास्तव में अभ्यास करने के लिए जीवन भर ले सकता है। यह सच्चे प्रेम का रहस्य है। सही मायने में इसका अभ्यास करें, आपको ईमानदारी से महसूस करना चाहिए उन लोगों से कोई अपेक्षा नहीं, जिन्हें आप प्यार करते हैं, और फिर भी बिना शर्त देखभाल। "पासिंग थिंकिंग ... जीवन को हम जितनी सांसें लेते हैं, उससे नहीं मापा जाता है; लेकिन उन क्षणों से भी जो हमारी सांस को रोक लेते हैं।

Tuesday 3 February 2009

मानव प्रादुर्भाव धरती पर

जीवन रहस्य 




सबसे  पहले  ब्रह्माजी  ने  इंडियन  और  हिन्दू  माइथोलॉजी  के  अनुसार  मनु  और  श्रद्धा  को  इस  पृथवी  पर  मानव  जीवन  को  आगे  बढ़ाने  और  सप्तऋषि  को  मार्ग  दर्शन  करने  के  लिए  भेजा  तो  मुझे  बताओ  आगे  की  पीढ़ी  में  सभी  भाई  बहिन  ही  थे  फिर  सृष्टि  कैसे  आगे  बड़ी ? 
मान लिया की उस समय अनजान में, जैसे ज्ञान की आभाव में उनका मिलान होता गया एवं इसी  प्रकार से मानव जाति का विकास होता गया फिर ये सब एक ही परिवार के सदस्य हुए।  इसके बाबजूद हमलोग अपनी अलग पहचान रखते हैं।  सबका मज़हब अलग है , इनमे काफी बड़ा भेदभाव रखा जा रहा है।  और तो और आये दिन कोई भी घटना दुर्घटना सब मानवों के विनाश के लिए हो रहा है।  क्या आज कोई मार्गदर्शक नहीं है जो वसुदेव कुटुम्ब्कम्ब का पाठ याद दिला सके और सबसे कहें की हम और हमारा विश्व पूर्ण रूप से एक ही फॅमिली है। क्या किसी के पास इन सवालों का जवाब है तो प्लीज मेरे सवालों का जवाब लिखे।  धन्यवाद 

दर्द(Pain)

  पूरे शरीर में दर्द के कारण कई लोगों को अकसर ही पूरे शरीर में दर्द रहता है। यह दर्द तनाव , स्ट्रेस , अनिद्रा आदि की व...