श्री गणेश चालीसा
दोहा
चौपाई
जयति शम्भु सुत गौरी नन्दन ।विघ्न हरन नासन भव फन्दन ||१||
जै गणनायक जनसुख दायक ।विश्व विनायक बुद्धि विधायक ||२||
एक रदन गज बदन विराजत ।वक्रतुंड शुचि शुंड सुसाजत ||३||
तिलक त्रिपुण्ड भाल शशि सोहत ।छबि सखि सुर नर मुनि मन मोहत ||४||
उर मणि माल सरोरुह लोचन ।रत्न मुकुट सिर सोच विमोचन ||५||
कर कुठार शुचि त्रिशूलम् ।मोदक भोग सुगन्धित फूलम् ||६||
सुन्दर पीताम्बर तन साजित ।चरण पादुका मुनि मन राजित ||७||
धनि शिव सुवन भुवन सुख दाता ।गौरी ललन षडानन भ्राता ||८||
ऋद्धि सिद्धि तव चंवर सुढारहिं ।मूषक वाहन सोहित द्वारहिं ||९||
तव महिमा को वर्णो पारा ।जन्म चरित्र विचित्र तुम्हारा ||१०||
एक असुर शिव रुप बनावै ।गौरीहिं छलन हेतु तहँ आवै ||११||
यह कारण ते श्री शिव प्यारी ।निज तन मैल मूर्ति रचि डारी ||१२||
सो निज सुत करि गृह रखवारे ।द्वारपाल सम तेहिं बैठारे ||१३||
जबहिं स्वयं श्री शिव तहँ आये ।बिनु पहिचान जान नहिं पाये ||१४||
पूछ्यो शिव हो किनके लाला ।बोलत भे तुम वचन रसाला ||१५||
मैं हूं गौरी सुत सुनि लीजै ।आगे पग न भवन हित दीजै ||१६||
आवाहिं मातु बूझि तब जाओ ।बालक से जानि बात बढ़ाओ ||१७||
चलन चाह्यो शिव बचन न मान्यो ।तब हवै क्रुद्ध युद्ध तुम ठान्यो ||१८||
तत्क्षण नहि कछु शंभु बिचास्यो ।गहि त्रिशुल भूल वश मार्यो ||१९||
शिरीष फूल सम सिर कटि गयउ ।छट उडि लोप पगन महँ भयउ ||२०||
गयो शंभु जब भवन मंझारी ।जहं बैठी गिरिराज कुमारी ||२१||
पूछे शिव निज मुसकाये ।कहहु सती सुत कहँ ते जाये ||२२||
खुलिगे भेद कथा सुनि सारी ।गिरी विकल गिरिराज दुलारी ||२३||
कियो न भल स्वामी अब जाओ ।लाओ शीष जहां से पाओ ||२४||
चल्यो विष्णु संग शिव विज्ञानी ।मिल्यो न सो हस्तीहिं सिर आनी ||२५||
धड ऊपर स्थितकर दीन्हयों ।प्राण वायु संचालन कीन्हयों ||२६||
श्री गणेश नाम धरायो ।विद्या बुद्धि अमर वर पायो ||२७||
भे प्रभु प्रथम पूज्य सुखदायक ।विघ्न विनाशक बुद्धि विधायक ||२८||
प्रथमहिं नाम लेत तव जोई ।जग कहँ सकल काज सिध होई ||२९||
सुमरहिं तुमहिं मिलहिं सुख नाना ।बिनु तव कृपा न कहुँ कल्याणा ||३०||
तुम्हरहिं शाप भयो जग आंकित ।भादवं चौथी चन्द्र अकलंकित ||३१||
जबहिं परीक्षा शिव तुहीं लीन्हा ।प्रदक्षिणा पृथ्वी कहि दीन्हा ||३२||
षड्मुख चल्यो मयूर उड़ाई ।बैठि रचे तुम सहज उपाई ||३३||
राम नाम महि पर लिखि अंका ।कीन्ह प्रदक्षिणा तजि मन शंका ||३४||
श्री पितु मातु चरण धरि लीन्ह्यो ।ता कहँ सात प्रदक्षिणा कीन्ह्यो ||३५||
पृथ्वी परिक्रमा फल पायो ।अस लखि सुरन सुमन वर्षायो ||३६||
सुन्दरदास राम के चेरा ।दुर्वासा आश्रम धरि डेरा ||३७||
विरच्यो श्रीगणेश चालीसा ।शिव पुराण वर्णित योगीशा ||३८||
नित्य गजानन जो गुण गावत ।गृह वसि सुमति परम सुख पावत ||३९||
जन धन धान्य सुवन सुख दायक ।देहिं सकल शुंभ श्री गणनायक ||४०||
दोहा
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