कुन्डली विवेचन के तरीके
१.
निर्णय करने के लिये शास्त्र की सहायता लेनी चाहिये,और संकेतों के माध्यम से जातक का
फ़लकथन कहना चाहिये,ध्यान रखना चाहिये कि नाम और धन आने के बाद आलस का आना स्वाभाविक है,इस बात को ध्यान रखकर किसी
भी जातक की उपेक्षा नही करना चाहिये,सरस्वती किसी भी रूप में आकर परीक्षा ले सकती है,और परीक्षा में खरा नही
उतरने पर वह किसी भी प्रकार से लांक्षित करने के बाद समाज और दुनिया से वहिष्कार
कर सकती है,जिसके ऊपर सरस्वती महरवान
होगी वह ही किसी के प्रति अपनी पिछली और आगे की कहानी का कथन कर पायेगा।
२.जब
प्रश्न करने वाला अनायास घटना का वर्णन करता है तो उसे उस घटना तथा उसके अपने
अनुमान में कोई अन्तर नही मिलेगा,दूसरे शब्दों में अगर समय कुन्डली या जन्म कुन्डली सही है तो वह गोचर
के ग्रहों के द्वारा घटना का वर्णन अपने करने लगेगी।
३.जिस
किसी घटना या समस्या का विचार प्रच्छक के मन में होता है,वह समय कुन्डली बता देती
है,और जन्म कुन्डली में गोचर
का ग्रह उसके मन में किस समस्या का प्रभाव दे रहा है,वह समस्या कब तक उसके जीवन
काल में बनी रहेगी,यह सब समस्या देने वाले ग्रह के अनुसार और चन्द्रमा के अनुसार कथन
करने से आसानी रहेगी।
४.प्रच्छक
की तर्क ही ज्योतिषी के लिये किसी शास्त्र को जानने वाले से अधिक है,उसकी हर तर्क ज्योतिषी को
पक्का भविष्य वक्ता बना देती है,जो जितना तर्क का जबाब देना जानता है,वही सफ़ल ज्योतिषियों की श्रेणी में
गिना जाता है।
५.कुशल
ज्योतिषी अपने को सामने आने वाली समस्याओं से बचाकर चलता है,उसे शब्दों का ज्ञान होना
अति आवश्यक है,किसी की मृत्यु का बखान
करते वक्त "मर जाओगे",की जगह "संभल कर चलना" कहना उत्तम है।
६.कुन्डली
के अनुसार किसी शुभ समय में किसी कार्य को करने का दिन तथा घंटा निश्चित करो,अशुभ समय में आपकी विवेक
शक्ति ठीक से काम नही करेगी,चाहे आंखों से देखने के बाद आपने कोई काम ठीक ही क्यों न किया हो,लेकिन किसी प्रकार की
विवेक शक्ति की कमी से वह काम अधूरा ही माना जायेगा।
७.ग्रहों
के मिश्रित प्रभावों को समझने की बहुत आवश्यक्ता होती है,और जब तक आपने ग्रहों ,भावों और राशियों का पूरा
ज्ञान प्राप्त नही किया है,आपको समझना कठिन होगा,जो मंगल चौथे भाव में मीठा पानी है,वही मंगल आठवें भाव में
शनि की तरह से कठोर और जली हुई मिट्टी की तरह से गुड का रूप होता है,बारहवें भाव में जाते जाते
वह मीठा जली हुयी शक्कर का हवा से भरा बतासा बन जाता है।
८.सफ़ल
भविष्य-वक्ता किसी भी प्रभाव को विस्तार से बखान करता है,समस्या के आने के वक्त से
लेकर समस्या के गुजरने के वक्त के साथ समस्या के समाप्त होने पर मिलने वाले फ़ल का
सही ज्ञान बताना ही विस्तार युक्त विवेचन कहा जाता है।
९.कोई
भी तंत्र यंत्र मंत्र ग्रहों के भ्रमण के अनुसार कार्य करते है,और उन्ही ग्रहों के समय के
अन्दर ही उनका प्रयोग किया जाता है,यंत्र निर्माण में ग्रहों का बल लेना बहुत आवश्यक होता
है,ग्रहो को बली बनाने के
लिये मंत्र का जाप करना आवश्यक होता है,और तंत्र के लिये ग्रहण और अमावस्या का बहुत ख्याल रखना
पडता है। कहावत भी है,कि मंदिर में भोग,अस्पताल में रोग और ज्योतिष में योग के जाने बिना केवल असत्य का भाषण
ही है।
१०.किसी
के प्रति काम के लिये समय का चुनाव करते वक्त सही समय के लिये जरा सा बुरा समय भी
जरूरी है,जिस प्रकार से डाक्टर दवाई
में जहर का प्रयोग किये बिना किसी रोग को समाप्त नही कर सकता है,शरीर में गुस्सा की मात्रा
नही होने पर हर कोई थप्पड मार कर जा सकता है,घर के निर्माण के समय हथियार रखने के लिये जगह नही बनाने
पर कोई भी घर को लूट सकता है।
११.किसी
भी समय का चुनाव तब तक नही हो सकता है,जब तक कि " करना क्या है" का उद्देश्य सामने न
हो।
१२.बैर
प्रीति और व्यवहार में ज्योतिष करना बेकार हो जाता है,नफ़रत मन में होने पर सत्य
के ऊपर पर्दा पड जाता है,और जो कहा जाना चाहिये वह नही कहना,नफ़रत की निशानी मानी जाती है,बैर के समय में सामने वाले के
प्रति भी यही हाल होता है,और प्रेम के वक्त मानसिक डर जो कहना है,उसे नही कहने देता है,और व्यवहार के वक्त कम या
अधिक लेने देने के प्रति सत्य से दूर कर देता है।
१३.ग्रह
कथन के अन्दर उपग्रह और छाया ग्रहों का विचार भी जरूरी है,बेकार समझ कर उन्हे छोडना
कभी कभी भयंकर भूल मानी जाती है,और जो कहना था या जिस किसी के प्रति सचेत करना था,वह अक्सर इन्ही कारणो से
छूट जाता है,और प्रच्छक के लिये वही
परेशानी का कारण बन जाता है,बताने वाला झूठा हो जाता है।
१४.जब
भी सप्तम भाव और सप्तम का मालिक ग्रह किसी प्रकार से पीडित है,तो कितना ही बडा ज्योतिषी
क्यों न हो,वह कुछ न कुछ तो भूल कर ही
देता है,इसलिये भविष्यकथन के समय
इनका ख्याल भी रखना जरूरी है।
१५.तीसरे
छठे नवें और बारहवें भाव को आपोक्लिम कहा जाता है,यहां पर विराजमान ग्रह राज्य के
शत्रु होते है,केन्द्र और पणफ़र लग्न के
मित्र होते है,यह नियम सब जगह लागू होता
है।
१६.शुभ
ग्रह जब आठवें भाव में होते है,तो वे अच्छे लोगों द्वारा पीडा देने की कहानी कहते है,लेकिन वे भी शुभ ग्रहों के
द्वारा देखे जाने पर पीडा में कमी करते हैं।
१७.बुजुर्ग
व्यक्तियों के आगे के जीवन की कहानी कहने से पहले उनके पीछे की जानकारी आवश्यक है,अगर कोई बुजुर्ग किसी
प्रकार से अपने ग्रहों की पीडा को शमन करने के उपाय कर चुका है,तो उसे ग्रह कदापि पीडा
नहीं पहुंचायेगा,और बिना सोचे कथन करना भी असत्य माना जायेगा।
१८.लगन
में सूर्य चन्द्र और शुभ ग्रह एक ही अंश राशि कला में विद्यमान हों,या सूर्य चन्द्र आमने
सामने होकर अपनी उपस्थित दे रहे हों तो जातक भाग्यशाली होता है,लेकिन पापग्रह अगर उदित अवस्था
में है तो उल्टा माना जायेगा।
१९.गुरु
और चन्द्र अगर अपनी युति दे रहे है,चाहे वह राशि में हो,या नवांश में हो,कोई भी पुरानी बात सामने नही आ सकती है,जिस प्रकार से इस युति के
समय में दी गयी दस्त कराने की दवा असर नही करती है।
२०.चन्द्र
राशि के शरीर भाग में लोहे के शस्त्र का प्रहार खतरनाक हो जाता है,जैसे कोई भी किसी स्थान पर
बैठ कर अपने दांतों को कील से खोदना चालू कर देता है,और उसी समय चन्द्रमा की
उपस्थिति उसी भाग में है तो या तो दांत खोदने की जगह विषाक्त कण रह जाने से भयंकर
रोग हो जायेगा,और मुंह तक को गला सकता है,और डाक्टर अगर इंजेक्सन
चन्द्र के स्थान पर लगा रहा है,तो वह इंजेक्सन या तो पक जायेगा,या फ़िर इंजेक्सन की दवा रियेक्सन कर जायेगी।
२१.जब
चन्द्रमा मीन राशि में हो,और लगनेश की द्रिष्टि पहले भाव से चौथे भाव और सातवें भाव में
उपस्थिति ग्रहों पर हो तो इलाज के लिये प्रयोग की जाने वाली दवा काम कर जायेगी,और अगर लगनेश का प्रभाव
सातवें भाव से दसवें भाव और दसवें भाव से पहले भाव तक के ग्रहों पर पड रही है तो
वह दवा उल्टी के द्वारा बाहर गिर जायेगी,या फ़ैल जायेगी।
२२.सिंह
राशि के चन्द्रमा में कभी भी नया कपडा नही पहिनना चाहिये,और न ही पहिना जाने वाला
उतार कर हमेशा के लिये दूर करना चाहिये,और यह तब और अधिक ध्यान करने वाली बात होती है जब
चन्द्रमा किसी शत्रु ग्रह द्वारा पीडित हो रहा हो,कारण वह वस्त्र पहिनने वाला या तो
मुशीबतों के अन्दर आ जायेगा,या वह कपडा ही बरबाद हो जायेगा।
२३.चन्द्रमा
की अन्य ग्रहों पर नजर मनुष्य के जीवन में अकुलाहट पैदा कर देती है,शक्तिशाली नजर फ़ल देती है,और कमजोर नजर केवल ख्याल
तक ही सीमित रह जाती है।
२४.चन्द्रमा
के जन्म कुन्डली में केन्द्र में होने पर अगर कोई ग्रहण पडता है,तो वह खतरनाक होता है,और उसका फ़ल लगन और ग्रहण
स्थान के बीच की दूरी के अनुसार होता है,जैसे सूर्य ग्रहण में एक घंटा एक साल बताता है,और चन्द्र ग्रहण एक घंटा
को एक मास के लिये बताता है। उदाहरण के लिये मान लीजिये कि ग्रहण के समय चन्द्रमा
चौथे भाव पहले अंश पर है,और लगन से चौथा भाव लगन में आने का वक्त सवा दो घंटे के अनुसार लगन
बदलने का पौने सात घंटे का समय लगता है,तो प्रभाव भी चन्द्र ग्रहण के अनुसार पोने सात महिने के
बाद ही मिलेगा,और सूर्य ग्रहण से पोने
सात साल का समय लगेगा।
२५.दसवें
भाव के कारक ग्रह की गति भूमध्य रेखा से नापी जाती है,और लगन के कारक ग्रह की
गति अक्षांश के अनुसार नापना सही होता है। जैसे एक जातक का पिता अपने घर से कहीं
चला गया है,तो उसका पता करने के लिये
भूमध्य रेखा से पिता के कारक ग्रह की दूरी नापने पर पिता की स्थिति मिल जायेगी,एक अंश का मान आठ किलोमीटर
माना जाता है,और लगनेश की दूरी के लिये
अक्षांश का हिसाब लगना पडेगा।
२६.यदि
किसी विषय का कारक सूर्य से अस्त हो,चाहे कुन्डली के अस्त भाग १,४,७, में या अपने से विपरीत
स्थान में हो तो कुछ बात छिपी हुई है,परन्तु बात खुल जायेगी यदि कारक उदित हो या उदित भाग में
हो।
२७.जिस
राशि में शुक्र बैठा हो उसके अनुरूप शरीर के भाग में शुक्र द्वारा सुख मिलता है,ऐसा ही दूसरे ग्रहों के
साथ भी होता है।
२८.यदि
चन्द्रमा का स्वभाव किसी से नही मिलता है,तो नक्षत्र के देखना चाहिए।
२९.नक्षत्र
पहले सूचित किये बिना फ़ल देते है,यदि कारक ग्रह से मेल नही खाते है तो कष्ट भी अक्समात देते हैं।
३०.यदि
किसी नेता की शुरुआत उसके पैतृक जमाने से लगन के अनुरूप है,तो नेता का पुत्र या
पुत्री ही आगे की कमान संभालेगी।
३१.जब
किसी राज्य का कारक ग्रह अपने संकट सूचक स्थान में आजाता है,तो राज्य का अधिकारी मरता
है।
३२.दो
आदमियों में तभी आपस में सदभावना होती है,जब दोनो के ग्रह किसी भी प्रकार से अपना सम्पर्क आपस में
बना रहे होते है,आपसी सदभावना के लिये मंगल से पराक्रम में,बुध से बातचीत से,गुरु से ज्ञान के द्वारा,शुक्र से धन कमाने के
साधनों के द्वारा,शनि से आपस की चालाकी या फ़रेबी आदतों से,सूर्य से पैतृक कारणों से
चन्द्र से भावनात्मक विचारों से राहु से पूर्वजों के अनुसार केतु से ननिहाल परिवार
के कारण आपस में प्रधान सदभावना प्रदान करते हैं।
३३.दो
कुन्डलियों के ग्रहों के अनुसार आपस में प्रेम और नफ़रत का भाव मिलेगा,अगर किसी का गुरु सही मार्ग
दर्शन करता है,तो कभी नफ़रत और कभी प्रेम
बनता और बिगडता रहता है।
३४.अमावस्या
का चन्द्र राशि का मालिक अगर केन्द्र में है तो वह उस माह का मालिक ग्रह माना
जायेगा।
३५.जब
कभी सूर्य किसी ग्रह के जन्मांश के साथ गोचर करता है,तो वह उस ग्रह के प्रभाव
को सजग करता है।
३६.किसी
शहर के निर्माण के समय के नक्षत्रों का बोध रखना चाहिये,घर बनाने के लिये ग्रहों
का बोध होना चाहिये,इनके ज्ञान के बिना या तो शहर उजड जाते है,या घर बरबाद हो जाते हैं।
३७.कन्या
और मीन लगन का जातक स्वयं अपने प्रताप और बल पर गौरव का कारण बनेगा,लेकिन मेष या तुला में वह
स्वयं अपनी मौत का कारण बनेगा।
३८.मकर
और कुम्भ का बुध अगर बलवान है,तो वह जातक के अन्दर जल्दी से धन कमाने की वृत्ति प्रदान करेगा,और जासूसी के कामों के
अन्दर खोजी दिमाग देगा,और अगर बुध मेष राशि का है तो बातों की चालाको को प्रयोग करेगा।
३९.तुला
का शुक्र दो शादियां करवा कर दोनो ही पति या पत्नियों को जिन्दा रखता है,जबकि मकर का शुक्र एक को
मारकर दूसरे से प्रीति देता है।
४०.लगन
पाप ग्रहों से युत हो तो जातक नीच विचारों वाला,कुकर्मो से प्रसन्न होने वाला,दुर्गन्ध को अच्छा समझने
वाला होता है।
४१.यात्रा
के समय अष्टम भाव में स्थित पापग्रहों से खबरदार रहो,पापग्रहों की कारक
वस्तुयें सेवन करना,पापग्रह के कारक आदमी पर विश्वास करना और पाप ग्रह की दिशा में
यात्रा करना सभी जान के दुश्मन बन सकते हैं।
४२.यदि
रोग का आरम्भ उस समय से हो जब चन्द्रमा जन्म समय के पाप ग्रहों के साथ हो,या उस राशि से जिसमे पाप
ग्रह है,से चार सात या दसवें भाव
में हो तो रोग भीषण होगा,और रोग के समय चन्द्रमा किसी शुभ ग्रह के साथ हो या शुभ ग्रह से चार
सात और दसवें भाव में हो तो जीवन को कोई भय नही होगा।
४३.किसी
देश के पाप ग्रहों का प्रभाव गोचर के पाप ग्रहों से अधिक खराब होता है।
४४.यदि
किसी बीमार आदमी की खबर मिले और उसकी कुन्डली और अपनी कुन्डली में ग्रह आपस में
विपरीत हों तो स्थिति खराब ही समझनी चाहिये।
४५.यदि
लगन के मुख्य कारक ग्रह मिथुन कन्या धनु और कुम्भ के प्रथम भाग में न हों,तो जातक मनुष्यता से दूर
ही होगा,उसमे मानवता के लिये कोई
संवेदना नही होती है।
४६.जन्म
कुन्डलियों में नक्षत्रों को महत्व दिया जाता है,अमावस्या की कुन्ड्ली में ग्रहों
का मासिक महत्व दिया जाता है,किसी भी देश का भाग्य (पार्ट आफ़ फ़ार्च्यून) का महत्व भी उतना ही जरूरी
है।
४७.अगर
किसी की जन्म कुन्डली में पाप ग्रह हों और उसके सम्बन्धी की कुन्डली में उसी जगह
पर शुभ ग्रह हों,तो पाप ग्रह शुभ ग्रहों को परेशान करने से नही चूकते।
४८.यदि
किसी नौकर का छठा भावांश मालिक की कुन्डली का लगनांश हो,तो दोनो को आजीवन दूर नही
किया जा सकता है।
४९.यदि
किसी नौकर का लगनांश किसी मालिक का दसवांश हो तो मालिक नौकर की बात को मान कर
कुंये भी कूद सकता है।
५०.एक
सौ उन्नीस युक्तियां ज्योतिष में काम आती है,बारह भाव,बारह राशिया,अट्ठाइस नक्षत्र द्रेष्काण आदि ही ११९ युक्तियां हैं।
५१.जन्म
की लगन को चन्द्र राशि से सप्तम मानकर किसी के चरित्र का विश्लेषण करो,देखो कितने गूढ सामने आते
है,और जो पोल अच्छे अच्छे नही
खोल सकते वे सामने आकर अपना हाल बताने लगेंगीं।
५२.व्यक्ति
की लम्बाई का पता करने के लिये लग्नेश दसवांश के पास होने वाला कारक लम्बा होगा,तथा अस्त और सप्तम के पास
कारक ठिगना होगा।
५३.पतले
व्यक्तियों का लगनेश अक्षांश के पास शून्य की तरफ़ होगा,मोटे व्यक्तियों का
अक्षांश अधिक होगा,उत्तर की तरफ़ वाला अक्षांश बुद्धिमान होगा,और दक्षिण की तरफ़ वाला
अक्षांश मंद बुद्धि होगा।
५४.घर
बनाते समय कारक ग्रहों में कोई ग्रह अस्त भाग २,३,४,४,६,७वें भाव में हो तो उसी कारक के
द्वारा घर बनाने में बाधा पडेगी।
५५.यात्रा
में मंगल अगर दस या ग्यारह में नही है,तो विघ्न नही होता है,यदि यात्रा के समय मंगल इन स्थानों
में है तो यात्रा में किसी न किसी प्रकार की दुर्घटना होती है,या चोरी होती है,अथवा किसी न किसी प्रकार
का झगडा फ़साद होता है।
५६.अमावस
तक शरीर के दोष बढते है,और फ़िर घटने लगते हैं।
५७.किसी
रोग में प्रश्न कुन्डली में अगर सप्तम भाव या सप्तमेश पीडित है तो फ़ौरन डाक्टर को
बदल दो।
५८.किसी
भी देश की कुन्डली की वर्ष लगन में ग्रह की द्रिष्टि अंशों में नाप कर देखो,घटना तभी होगी जब दृष्टि
पूर्ण होगी।
५९.किसी
बाहर गये व्यक्ति के वापस आने के बारे में विचारो तो देखो कि वह पागल तो नही है,इसी प्रकार से किसी के
प्रति घायल का विचार करने से पहले देखो कि उसके खून कही किसी बीमारी से तो नही बह
रहा है,किसी के लिये दबे धन को
मिलने का विचार कहने से पहले देखो कि उसका अपना जमा किया गया धन तो नही मिल रहा है,कारण इन सबके ग्रह एक सा
ही हाल बताते हैं।
६०.रोग
के विषय में विचार करो कि चन्द्रमा जब रोग खतरनाक था,तब २२-३० का कोण तो नही
बना रहा था,और जब बना रहा था,तो किस शुभ ग्रह की
द्रिष्टि उस पर थी,वही ग्रह बीमार को ठीक करने के लिये मान्य होगा।
६१.शरीर
के द्वारा मानसिक विचार का स्वामी चन्द्रमा है,वह जैसी गति करेगा,मन वैसा ही चलायमान होगा।
६२.अमावस्या
पूर्ण की कुन्डली बनाकर आगामी मास के मौसम परिवर्तन का पता किया जा सकता है,केन्द्र के स्वामी वायु
परिवर्तन के कारक है,और इन्ही के अनुसार परिणाम प्रकाशित करना उत्तम होगा।
६३.गुरु
शनि का योग दसवें भाव के निकट के ग्रह पर होता है,वह धर्मी हो जाता है,और अपने अच्छे बुरे विचार
कहने में असमर्थ होता है।
६४.कार्य
के स्वामी को देखो कि वह वर्ष लगन में क्या संकेत देता है,उस संकेत को ध्यान में
रखकर ही आगे के कार्य करने की योजना बनाना ठीक रहता है।
६५.कम
से कम ग्रह युति का मध्यम युति से और मध्यम युति का अधिकतम युति से विचार करने पर
फ़ल की निकटता मिल जाती है।
६६.किसी
के गुण दोष विचार करते वक्त कारक ग्रह का विचार करना उचित रहता है,अगर उस गुण दोष में कोई
ग्रह बाधा दे रहा है,तो वह गुण और दोष कम होता चला जायेगा।
६७.जीवन
के वर्ष आयु के कारक ग्रह की कमजोरी से घटते हैं।
६८.सुबह
को उदित पाप ग्रह आकस्मिक दुर्घटना का संकेत देता है,यह अवस्था ग्रह के बक्री
रहने तक रहती है,चन्द्र की स्थिति अमावस से सप्तमी तक यानी सूर्य से ९० अंश तक सातवें
भाव तक अस्त ग्रह रोग का संकेत करता है।
६९.अगर
चन्द्रमा सातवें भाव में है और चौथे भाव में या दसवें भाव में शनि राहु है,तो जातक की नेत्र शक्ति
दुर्बल होती है,कारण सूर्य चन्द्र को नही
देख पाता है,और चन्द्र सूर्य को नही
देख पाता है,यही हाल दुश्मन और घात
करने वालों के लिये माना जाता है।
७०.यदि
चन्द्रमा बुध से किसी प्रकार से भी सम्बन्ध नही रखता है,तो व्यक्ति के पागलपन का
विचार किया जाता है,साथ ही रात में शनि और दिन में मंगल कर्क कन्या या मीन राशि का हो।
७१.सूर्य
और चन्द्र पुरुषों की कुन्डली में राशि के अनुसार फ़ल देते है,लेकिन स्त्री की राशि में
राशि के प्रभाव को उत्तेजित करते है,सुबह को उदित मंगल और शुक्र पुरुष रूप में है और शाम को स्त्री
रूप में।
७२.लगन
के त्रिकोण से शिक्षा का विचार किया जाता है,सूर्य और चन्द्र के त्रिकोण से जीवन का विचार किया जाता
है।
७३.यदि
सूर्य राहु के साथ हो और किसी भी सौम्य ग्रह से युत न हो या किसी भले ग्रह की नजर
न हो,सूर्य से मंगल सप्तम में
हो,और कोई भला ग्रह देख नही रहा
हो,सूर्य से मंगल चौथे और
द्सवें में हों,कोई भला ग्रह देख नही रहा
हो,तो फ़ांसी का सूचक है,यदि द्रिष्टि मिथुन या मीन
में हो,तो अंग भंग होकर ही बात रह
जाती है।
७४.लगन
का मंगल चेहरे पर दाग देता है,छठा मंगल चोरी का राज छुपाता है।
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