हिंदू उत्तराधिकार कानून
· न्यूज़ पेपर नवभारत टाइम्स के मुताबिक आज यहाँ मैं आपके सभी सवालों का जवाब लेकर आया हूँ कि हिन्दू परिवार के संपत्ति में कैसे बंटवारा किया जाय और इसमें किसका कितना अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट कि ताज़ा फैसले में इस बात पर पूरजोर ध्यान दिया गया है कि आने वाले समय में कहीं कोई विवाद न हो तथा हर संतान को उसका अधिकार मिले। आइये बताये गए पॉइंट पर गौर फरमाते हैं और विरासत में मिली संपत्ति के अधिकारों को खंगालते हैं , जो इस प्रकार है
हाइलाइट्स
- सुप्रीम कोर्ट ने पिता की पैतृक संपत्ति में बेटियों के हक पर बड़ा फैसला दिया
- मंगलवार को तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार है
- इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों को 1956 से ही बेटियों को संपत्ति का अधिकार दे दिया
नई दिल्ली
सुप्रीम
कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने मंगलवार को पैतृक संपत्ति में बेटियों के हक
पर बड़ा फैसला दिया। इसके साथ ही पीठ ने कहा कि यह लैंगिक समानता हासिल
करने की दिशा में बड़ा कदम है। हालांकि, पीठ ने कहा कि इसमें देरी हो गई।
इसने कहा, 'लैंगिक समानता का संवैधानिक लक्ष्य देर से ही सही, लेकिन पा
लिया गया है और विभेदों को 2005 के संशोधन कानून की धारा 6 के जरिए खत्म कर
दिया गया है। पारंपरिक शास्त्रीय हिंदू कानून बेटियों को हमवारिस होने से
रोकता था जिसे संविधान की भावना के अनुरूप प्रावधानों में संशोधनों के जरिए
खत्म कर दिया गया है।' आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर 10 बड़े
सवालों के जवाब...
1. सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम
कोर्ट ने कहा कि पैतृक संपत्ति में बेटियों का बेटों के बराबर अधिकार होता
है। उसने पैतृक संपत्ति पर बेटियों को अधिकार को जन्मजात बताया। मतलब,
बेटी के जन्म लेते ही उसका अपने पिता की पैतृक संपत्ति पर अधिकार हो जाता
है, ठीक वैसे जैसे एक पुत्र जन्म के साथ ही अपने पिता की पैतृक संपत्ति का
दावेदार बन जाता है।
2. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा?
सुप्रीम
कोर्ट के सामने यह सवाल उठा कि क्या हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून,
2005 के प्रावधानों को पिछली तारीख (बैक डेट) से प्रभावी माना जाएगा? इस
सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हां, यह बैक डेट से ही लागू है। 121
पन्नों के अपने फैसले में तीन सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा
ने कहा, 'हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 की संशोधित धारा 6 संशोधन से पहले
या बाद जन्मी बेटियों को हमवारिस (Coparcener) बनाती है और उसे बेटों के
बराबर अधिकार और दायित्व देती है। बेटियां 9 सितंबर, 2005 के पहले से
प्रभाव से पैतृक संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा ठोक सकती हैं।'
3. 9 सितंबर, 2005 का मामला क्यों उठा?
इस
तारीख को हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून 2005 लागू हुआ था। दरअसल,
हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 से अस्तित्व में है जिसे 2005 में संशोधित
किया गया था। चूंकि 2005 के संशोधित कानून में कहा गया था कि इसके लागू
होने से पहले पिता की मृत्यु हो जाए तो बेटी का संपत्ति में अधिकार खत्म हो
जाता है। यानी, अगर पिता संशोधित कानून लागू होने की तारीख 9 सितंबर, 2005
को जिंदा नहीं थे तो बेटी उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती
है।
4. सुप्रीम कोर्ट के फैसले में वर्ष 1956 का जिक्र क्यों?
जैसा
कि ऊपर बताया गया है- हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 में ही आया था। अब
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 की धारा 6 की
व्याख्या करते हुए कहा कि बेटी को उसी वक्त से पिता की पैतृक संपत्ति में
अधिकार मिल गया जबसे बेटे को मिला था, यानी साल 1956 से।
5. 20 दिसंबर, 2004 का जिक्र क्यों?
सुप्रीम
कोर्ट ने बेटी को पिता की पैतृक संपत्ति में 1956 से हकदार बनाकर 20
दिसंबर, 2004 की समयसीमा इस बात के लिए तय कर दी कि अगर इस तारीख तक पिता
की पैतृक संपत्ति का निपटान हो गया तो बेटी उस पर सवाल नहीं उठा सकती है।
मतलब, 20 दिसंबर, 2004 के बाद बची पैतृक संपत्ति पर ही बेटी का अधिकार
होगा। उससे पहले संपत्ति बेच दी गई, गिरवी रख दी गई या दान में दे दी गई तो
बेटी उस पर सवाल नहीं उठा सकती है। दरअसल, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन)
कानून, 2005 में ही इसका जिक्र है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात
को सिर्फ दोहराया है।
6. क्या बेटों के अधिकार पर ताजा फैसले का कोई असर होगा?
कोर्ट
ने संयुक्त हिंदू परिवारों को हमवारिसों को ताजा फैसले से परेशान नहीं
होने की भी सलाह दी। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने कहा, 'यह सिर्फ
बेटियों के अधिकारों को विस्तार देना है। दूसरे रिश्तेदारों के अधिकार पर
इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्हें सेक्शन 6 में मिले अधिकार बरकरार
रहेंगे।'
7. क्या बेटी की मृत्यु हो जाए तो उसके बच्चे नाना की संपत्ति में हिस्सा मांग सकते हैं?
इस
बात पर गौर करना चाहिए कि कोर्ट ने पैतृक संपत्ति में बेटियों को बेटों के
बराबर अधिकार दिया है। अब इस सवाल का जवाब पाने कि लिए एक और सवाल कीजिए
कि क्या पुत्र की मृत्यु होने पर उसके बच्चों का दादा की पैतृक संपत्ति पर
अधिकार खत्म हो जाता है? इसका जवाब है नहीं। अब जब पैतृक संपत्ति में
अधिकार के मामले में बेटे और बेटी में कोई फर्क ही नहीं रह गया है तो फिर
बेटे की मृत्यु के बाद उसके बच्चों का अधिकार कायम रहे जबकि बेटी की मृत्यु
के बाद उसके बच्चों का अधिकार खत्म हो जाए, ऐसा कैसे हो सकता है? मतलब साफ
है कि बेटी जिंदा रहे या नहीं, उसका पिता की पैतृक संपत्ति पर अधिकार कायम
रहता है। उसके बच्चे चाहें कि अपने नाना से उनकी पैतृक संपत्ति में
हिस्सेदारी ली जाए तो वो ले सकते हैं।
8. पैतृक संपत्ति क्या है?
पैतृक
संपत्ति में ऊपर की तीन पीढ़ियों की संपत्ति शामिल होती है। यानी, पिता को
उनके पिता यानी दादा और दादा को मिले उनके पिता यानी पड़दादा से मिली
संपत्ति हमारी पैतृक संपत्ति है। पैतृक संपत्ति में पिता द्वारा अपनी कमाई
से अर्जित संपत्ति शामिल नहीं होती है। इसलिए उस पर पिता का पूरा हक रहता
कि वो अपनी अर्जित संपत्ति का बंटवारा किस प्रकार करें। पिता चाहे तो अपनी
अर्जित संपत्ति में बेटी या बेटे को हिस्सा नहीं दे सकता है, कम-ज्यादा दे
सकता है या फिर बराबर दे सकता है। अगर पिता की मृत्यु बिना वसीयतनामा लिखे
हो जाए तो फिर बेटी का पिता की अर्जित संपत्ति में भी बराबर की हिस्सेदारी
हो जाती है।
9. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा?
केंद्र
सरकार ने भी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के जरिए पैतृक संपत्ति में बेटियों
की बराबर की हिस्सेदारी का जोरदार समर्थन किया। केंद्र ने कहा कि पैतृक
संपत्ति में बेटियों का जन्मसिद्ध अधिकार है। जस्टिस मिश्रा ने इसकी
व्याख्या करते हुए कहा कि बेटियों के जन्मसिद्ध अधिकार का मतलब है कि उसके
अधिकार पर यह शर्त थोपना कि पिता का जिंदा होना जरूरी है, बिल्कुल अनुचित
होगा। बेंच ने कहा, 'बेटियों को जन्मजात अधिकार है न कि विरासत के आधार पर
तो फिर इसका कोई औचित्य नहीं रह जाता है कि हिस्सेदारी में दावेदार बेटी का
पिता जिंदा है या नहीं।'
10. बेटियां ताउम्र प्यारी... जैसी कौन सी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने की?
सुप्रीम
कोर्ट ने अभी अपनी तरफ से इस पर कुछ नहीं कहा। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने
1996 में दिए गए फैसले के वक्त ही कही थी। तीन सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष
जस्टिस अरुण मिश्रा ने इसे दोहराया। उन्होंने कहा, 'बेटा तब तक बेटा होता
है जब तक उसे पत्नी नहीं मिलती है। बेटी जीवनपर्यंत बेटी रहती है।' तीन
सदस्यीय पीठ में जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह भी शामिल थे।