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Sunday 13 September 2020

बचपन में स्कूल की मज़ेदार कहानी

मेरे पिताजी की आवासीय विद्यालय में उनके द्वारा सुनाई सत्य घटनाओं पर मेरे द्वारा वर्णित विश्लेषण

मैं( मेरे बाबूजी) अपने स्कूल टाइम की बात बताने जा रहा हूँ । हमलोग करीब १०-१२ छात्र पंजवारा मिडिल स्कूल में पढ़ते थे। हमारे प्रधानाध्यापक श्री चक्रधर प्रसाद सिंह थे।  उनके समय में अनुशाषण और स्कूल प्रभंदन बहुत अच्छा था। एक मज़ाकिया दौर याद आ रहा है , उस समय हमलोग हॉस्टल में रहते थे।  हमारे रसोइये का नाम महादेव तिवारी(अनंत तिवारी के पिताजी ) था जो बैधनाथपुर ग्राम के थे।  हॉस्टल में सुबह शाम हमारे लिए महादेव जी बहुत तन्मयता से भोजन तैयार करते थे और हमसब एक साथ गुरु और शिष्य भोजन ग्रहण करते थे।  हमारे हेडमास्टर सर एक ही बार में परोसा गया भोजन खाकर उठ जाते थे परन्तु हमलोग अपने रुचि अनुसार परोशन लेते और जी भर कर भोजन करते थे।  भोजन करने वालों  में हमारे एक सर  जो हिंदी के शिक्षक (५वी और ६ठी कक्षा )  थे, उनका नाम चूमितलाल झा था। उनका एक पुत्र भी साथ में रहता और मेस में ही खाता था जिसका नाम लडडू था।  अन्य शिक्षक भी रहते थे। हमारे चपरासी का नाम चंडी मंडल उर्फ़ चिगड़ा था। 

श्री चक्रधर गुरु जी को कभी कभी हिस्टेरिया का भी दौरा पड़ता था , लेकिन वो बहुत ही संजमित रहते थे। 

उस समय हमारे मित्र मंडली में सीनियर छात्र जो (६-७) क्लास में थे उनका नाम मुबारक हुसैन ,श्याम सुन्दर शाह ,जगदीश रामदास ,सितावी गोप आदि थे , उस समय मैं (आमिर लाल शाह ) ५वीं क्लास में पढता था। भोजन के समय पंडित जी (चूमितलाल झा) अक्सर छात्रों की ओर देखकर अपने दोनों कलाई को कमर से ऊपर पेट के दोनों बगल में हथेली को खोलकर उँगलियों को फैलाकर यूँ इशारा करते थे की तुम लोग बहुत खाते हो।  ऐसी कलुषित भावना और इशारा को देखकर कुछ विद्यार्थी खाना जल्दी और आधे पेट खाकर ही उठ जाया करते थे।  इन सब कारनामो को हमारे रसोइये महादेव जी भी नोटिस करते थे लेकिन शिष्टाचारवश कुछ बोल नहीं पाते थे।  लेकिन जब ये सिलसिला लगातार जारी रहा तो एक दिन महादेव जी हमारे हेडमास्टर सर के पास जाकर कहने लगे कुछ टूटी फूटीहिंदी  में क्यूंकि अंगिका उनकी भाषा थी, बाबा जी अब नहीं रहेगी इस बात को सुनकर आश्चर्य से उन्होंने कहा की महादेव तुम ऐसा क्यों कह रहे हो फिर उन्होंने बहुत ही इनोसेंट पूर्वक ये वाक्या बयां किया की आप तो खाकर उठ जाते हैं लेकिन पंडी जी ३-३ बार परोशन लेकर खाती रहती है और  कहती रहती है , लड़कों को हाथ फैलाकर यु इशारा करती है की तुमलोग बहुत खाती है। इस बात पर प्रधानाध्यापक श्री चक्रधर महोदय बहुत नाराज़ हुए और पड़ी जी को अलग से ऑफिस में बुलाकर पूछा की आप भी वहीँ खाते है और मैं भी वहीँ खाता हूँ जो भोजन बच्चों के लिए बनता है और उनके ही कंट्रीब्यूशन से तैयार होता है , फिर आप ऐसा क्यों करते हैं ? इसके रिप्लाई में पंडी जी ने गलती मान कर कहा की आगे से ध्यान रखूंगा। फिर चक्रधर महोदय ने कहा की अगर आपकी इच्छा हो तो आपका और आपके लड़के का भोजन आपके आवास पर ही भेज दिया जाएगा अन्यथा आप हमारे साथ ही भोजन करेंगे।  इसपर पंडित जी अपने आवास पर ही भोजन पहुंचवाने की इच्छा ज़ाहिर किया।  तत्पश्चात भोजन उन्हें घर पर ही उपलब्ध कराया जाने लगा ,लेकिन अचानक १०-१२ दिन के बाद वो और उनका पुत्र मेस में पुनः आकर भोजन के लिए उपस्थित हुए।

उन्होंने कहा की मैं लड़कों के साथ ही भोजन करूंगा क्यूंकि मेरा भोजन जो मुझे मिल रहा है उससे पेट नहीं भर रहा है।  फिर उनकी पुराणी अश्लील हरकत कुछ दिनों के बाद पुनः शुरू हो गया ऐसा देखकर बाबा जी ( महादेव तिवारी) फिर से चक्रधर महोदय के पास जाकर कहने लगे बबा जी अब नहीं रहेगी क्यूंकि जो भोजन स्टूडेंट का है उसे पंडी जी और उनका पुत्र तृप्त होने तक खाते भी  हैं और अश्लील इशारा भी करते हैं।  उनके दो तीन बार दुहराने के बाद हेडमास्टर साहब ने कहा की सभी मास्टरों को बुलाओ। शक्तिनाथ झा , रामप्रसाद झा, इन्द्रलाल झा एवं रेहमान मौलवी इन सब शिक्षकों के आने के बाद शारी घटनाक्रम को बताया गया और फिर रसोइये महादेव तिवारी की की सच्चाई जानकर पंडी जी को मेस से खानपान की व्यवस्था से वंचित किया गया।  आज मैं उस दौर की इस घटना को इसलिए बताने के लिए मज़बूर हो गया क्यूंकि उस समय चूमितलाल  झा जैसे पंडित जी , जो जिसका नमक खाते थे उन्हीं का उपहास और आलोचना भी करते थे।  और जिनका अधिकार था उससे उन्हें वंचित करना उनका स्वाभाव था। उस समय ऐसे लोग १% ही थे बांकी सच्चाई थी लेकिन आज के दौर में ये संख्या उलटी हो गयी हैं और ज्यादातर लोग पंडी जी की तरह ही सबकी टांग खींच कर अपनी किस्मत चमकाने में लगे हुए हैं। अतः हमे अपने पुराने समय की बहुत याद आती हैं। 

धन्यवाद उन सभी का जिन्हे इस कहानी से कुछ शिक्षा मिलती हो। सप्रेम नमस्ते 

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