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Sunday 13 September 2020

मंदिर के बगीचे की कहानी


मेरे पिताजी की सत्य तथ्यों पर आधारित उन्ही की ज़ुबानी में मेरे द्वारा लिखी हुई कहानी


मै (मेरे पिता श्री आमिर लाल शाह) हमेशा अपने परिवार , समाज  ,गांव  तथा सबसे ऊपर अपने आराध्य देव के बारे में सोचता रहता हूँ। इन सबके बीच कब ज़िन्दगी के इतने साल गुजर गए कुछ पता ही नहीं लगा और अब जब मै अपने भूत , भविष्य और वर्तमान का आकलन करता हूँ तो मुझे सब बैलेंस ही लगता है। ईमानदारी से मैंने सिर्फ इतना ही किया की  अपना तथा अपनों की परवाह किये बगैर हमेशा मै दूसरों के लिए जिया और इतना कम  भी नहीं, जी भर कर जिया।  संभवतः इस उड़ान में मैं अपने करीबी (जैसे अपनी पत्नी , बच्चों) की परवाह भी नहीं किया।  लेकिन उनकी किसी जिम्मेदारी से पीछे भी नहीं हटा। आज ज़िन्दगी के ७९वें वसंत गुज़र जाने के बाद सही गलत का आकलन हर कोई अपने स्वार्थ और फायदे के लिए करता है , जिससे मुझे सबसे अधिक नफरत होती है।  क्यूंकि मैंने इनसे ही तो दूरी बनाई थी और आज का सभ्य समाज इन्ही ढकोसले का अमली जामा पहन कर इज़्ज़तदार होने की तारीफ करता दिखाई पड़ रहा है। 

 एक छोटी सी वाक्या को आपके सामने रख रहा हूँ , संभवतः आपको इनसे कुछ empathy अवश्य होगी। 

मेरे ग्राम में एक बहुत ही पौराणिक , भव्य और स्वतः प्रगट हुए बाबा कष्टहार नाथ (भगवान भोले नाथ) का प्राचीन मंदिर है।  दूर -दूर से इस मंदिर में लोग अपनी पवित्र आस्था को लेकर दर्शन को आते हैं और बाबा किसी न किसी तरह से हर एक की at least एक इच्छा अवश्य पूर्ण करते हैं। 

इसी मंदिर के प्रांगण में एक शिवगंगा है , और भी कई मंदिर है जिनमे अन्य देवताओं का वास है।  उनमे से एक बजरंगबली का मंदिर है तथा एक माता काली  का भी हमारे प्रयासों से निर्मित भव्य काली स्थान  है। 

ये सारी बात मै आपको इसलिए  बता रहा हूँ क्यूंकि आगे जो कहानी है उसके लिए आपको इनसब बातों को  बताना जरूरी है। ये वाक्या आज से तकरीबन ३२-३५ साल पहले की है जब इसी मंदिर प्रागण में खाली पड़ी भूमि पर कुछ असामाजिक तत्त्व(सकील अहमद और उनके साथी ) अनधिकृत कब्ज़ा करना चाह रहे थे , बात कुछ ऐसी थी मैं (आमिर लाल साह) और मेरे भइया (अनूप लाल साह )  मिलकर उस खाली पड़ी जमीन पर आम का बगीचा लगाने का विचार किया जिससे सभी आगंतुकों का कुछ भला हो सके और मंदिर के  कोष में धन जमा हो सके , जनमानस को छाया मिल सके , इन सब लोक  कल्याण  भावना  के समावेशित होने पर मैंने अपने बड़े भैया के सामने यह प्रश्ताव लाया तो उन्होंने सहर्ष सहमति प्रदान की।  फिर हमने भागलपुर के सबौर कृषि विश्वविद्यालय से चुनिंदा आम के पौधों को मंगाया।  फिर वृक्षारोपण  का कार्य शुरू किया गया तो अचानक उन असामाजिक तत्वों के द्वारा व्यवधान उत्पन्न किया गया और उन्होंने ये प्रश्ताव रखा की ये तो खास (सरकारी ) जमीन है फिर इसमें कोई कार्य नहीं किया जा सकता है। उनलोगों के विरोध की वजह से हमारा काम खटाई में पड़ गया , उस समय मैं फुल्लीडुमर उच्च विद्यालय में कार्यरत था।  सप्ताहांत मैं कभी घर भी आ जाता था , मेरे घर पहुंचने के बाद भैया ने मुझे सारी बातों से अवगत कराया तथा उनके छोटी मानशिकता का भी जिक्र किया।  इन सब बातों से विचलित हुए बगैर मैंने विचार कर नकुल मंडल को साथ में लेकर गोड्डा ब्लॉक जाकर सर्किल अधिकारी से मुलाकात किया और फिर आवेदन भी दिया की मंदिर प्रागण में सरकारी जमीन भी मंदिर का ही है और इसमें लोक कल्याण कार्य करने में  किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। अंचलाधिकारी के समर्थन प्राप्त होने के बाद मैं खुद इस कार्य में मौजूद रहा था विद्यालय से अवकाश लेकर संपन्न होने तक रहा।  वहीँ पासवान के घर के समीप मेरा निजी ईटा (२० हज़ार ) करीब था जिसे मैंने गैबियन (जालीदार दिवार पौधे के चारो ओर बनाया जाने वाली आकृति ) बनाने हेतु दान में दिया और बागीचे की नींव रक्खी।  एक बीजू आम का पेड़ सिलधर साह द्वारा भी दान किया गया था। 

८-१० वर्ष के पश्चात जब पहली बार आम का फल बागीचे में आया तो सर्वसम्मति से ये निर्णय लिया गया की , सभी आम परिपक़्व होने के बाद तोड़ कर बिपिन साह (जलधर साह के पुत्र ) एक मज़दूर को साथ लेकर ग्रामवासियों को प्रसाद स्वरुप घर -घर जाकर र ५ /आम के दर से बेचा जाय और इससे होने वाले आय से बगीचे और मंदिर की देखभाल किया जाय।  इस कार्य में मैं भी आगे बढ़कर २५ आम लिया और र १२५ की कीमत अदा किया जिससे हर गांव वाले भी अपना योगदान दें और भगवान के घर का फल भी ग्रहण कर सकें।  

आज ये बगीचा लहलहा रहा है और हर वर्ष इसमें आम का फल प्रचूर मात्रा में आता है जो मंदिर की देखभाल के लिए उपयोग किया जाता है। 

हमने तो सेवा भावना से इस कार्य को हर संभव तन से ,मन से ,धन से तथा बहुमूल्य समय देकर अंजाम तक पहुंचाया।  परन्तु आज की तिथि में इसके  लाभ और सदूपयोगिता को आधार भूत स्तर पर करने वालों की इच्छा शक्ति की कमी देखी जा रही है जिसकी वजह से  मंदिर की देखभाल का कार्य भी समुचित सुनिश्चित नहीं लगता है। 

आगे फिर उपस्थित रहूंगा अपनी सत्य घटनाओं को लेकर , आपका बहुत - बहुत धन्यवाद। अपना प्यार यु हीं बनाये रखिये।  शुक्रिया

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